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दिनांक 13 नवंबर 1976
श्री रजनीश आश्रम, पूना ।
सूत्र:
कायकृत्यासह : पूर्व ततो वाग्विस्तरासह। अद्य चितासह स्तस्मादेवमेवाहमास्थितः ।। 10711 प्रीत्यभावेन शब्दादेरवश्यत्वेन चात्यनः । विक्षेयैकाग्रहदय श्वमेवाहमास्थित ।। 10811 समाध्यासादिविक्षिप्तौ व्यवहारः समाधये । एवं विलोक्य नियमेवमेवाहमास्थितः ।। 10911 हेयोयादेयविरहादेव हर्षविषादयोः ।
अभावादद्य हे ब्रह्माब्रेबमेवाहमास्थित! | 11011 आश्रमानाश्रमं ध्यानं चित्तस्वीकृतवर्जनम् । विकल्प मम वीक्यैतैरवमेवाहमास्थितः ।। 111।। कर्मानुष्ठानमज्ञामाछथैवोयरमस्तथा । बुद्धवा सम्यगिदं तत्त्वमेवमेवाहमास्थित।। 112।। अचिंत्य चिंत्यमानोउयि चिंतारूपं भजत्यसौ ।
त्यक्ला तद्भावनं तस्मादेवमेवाहमास्थित।। 11311 एवमेव कृतं कृतार्थो भवेदसौ । श्वमेव स्वभावो यः स कृताथों भवेदसौ । । 114।।
हर जगह जीवन विकल है।
हर जगह जीवन विकल है- प्रवचन - तीसरा
तृषित मरुथल की कहानी
हो चुकी जग में पुरानी किंतु वारिधि के हृदय की प्यास उतनी ही अटल है। हर जगह जीवन विकल है।