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सूफी फकीर हुआ बायजीद। वह रोज प्रार्थना करता था, वह कहता था,'सब करना प्रभु, थोड़ा दुख मुझे दिये रहना। सुख ही सुख में मैं भूल जाऊंगा। तुम्हें मेरा पता नहीं है। सुख ही सुख में मैं निश्चित भूल जाऊंगा। तुम इतना ही सुख मुझे देना जितने में मैं भूल न सकु बाकी तुम दुख को देते रहना।'
यह बायजीद ठीक कह रहा है। यह कह रहा है: दुख रहेगा तो जागरण बना रहेगा। सुख में तो नींद आ जाती है। सुख में तो आदमी सो जाता है।
व्यर्थ कोई भाग जीवन का नहीं है व्यर्थ कोई राग जीवन का नहीं है। बांध दो सबको सुरीली तान में तुम,
बांध दो बिखरे सुरों को गान में तुम। दुख भी अर्थपूर्ण है। उसका भी सार है। वह जगाता है। जिस दिन तुमने यह देख लिया कि दुख जगाता है, उस दिन तुम दुख को भी धन्यभाग से स्वीकार करोगे। उस दिन तुम्हारे जीवन में निषेध गिर जायेगा। अब तो तुम काटो को भी स्वीकार कर लोगे, क्योंकि तुम जानते हो काटो के बिना फूल होते नहीं। यह गुलाब का फूल काटो के साथ-साथ है। यह बोध का फूल वेदना के साथ-साथ
पांचवां प्रश्न :
जीवन का सत्य यदि अदवैत है, तो फिर दवैत क्यों है?
एक जगत रूपायित प्रत्यक्ष एक कल्पना संभाव्य एक दुनिया सतत मुखर एक एकांत निस्लर एक अविराम गति उमंग एक अचल निस्तरंग
दो पाठ, एक ही काव्य। दो नहीं है। दो पाठ हैं-काव्य एक ही है।
सत्य तो एक ही है। सोये-सोये देखो तो संसार मालूम पड़ता है। जाग कर देखो, परमात्मा मालूम पड़ता है। संसार और परमात्मा ऐसी दो चीजें नहीं हैं। सोये हुए आदमी ने जब परमात्मा को