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घर लौटे, रात सो गये, फिर सुबह दौड़े फुरसत कहां है कि पता लगायें कि कौन सुर्ख । कौन दुखी, हम सुखी कि दुखी हैं! इतना समय कहां! लेकिन रिटायर हो गये, अब बैठे-ठाले, कुछ काम नहीं है, बस यही सोच रहे हैं कि सुखी कि दुखी! और हजार चिंतायें घेर रही हैं कि दुनिया में ऐसा होगा कि नहीं होगा। सारा संसार इनके लिए समस्या बन जाता है।
आलसी शिरोमणि का अर्थ है. ऐसा व्यक्ति, जिसने कर्म नहीं, कर्ता भी छोड़ दिया। कर्ता के छोड़ते ही सारी चिंता भी छूट जाती है।
मुल्ला नसरुद्दीन एक दफ्तर में काम करता है। मालिक ने उससे कहा कि नसरुद्दीन, तुमने सुना, अब दुनिया में ऐसी-ऐसी मशीनें बन गई हैं जो एक साथ दस आदमियों का काम कर सकती हैं! क्या तुम्हें यह सुन कर डर नहीं लगता? नसरुद्दीन ने कहा : 'बिलकुल नहीं सरकार! क्योंकि आज तक कोई मशीन ऐसी नहीं बनी जो कुछ न करती हो । आदमी का कोई मुकाबला ही नहीं है। जो कुछ न करती हो, ऐसी कोई मशीन बनी ही नहीं है । '
नसरुद्दीन से मैंने एक दिन कहा कि तू कभी छुट्टी पर नहीं जाता, क्या दफ्तर में तेरी इतनी जरूरत है? उसने कहा कि अब सच बात आपसे क्या छिपानी । दफ्तर में मेरी जरूरत बिलकुल नहीं है, इसीलिए तो छुट्टी पर नहीं जाता, छुट्टी पर गया तो उनको पता चल जायेगा कि इसके बिना ठीक चल रहा है, कोई जरूरत ही नहीं है। मैं छुट्टी पर जा ही नहीं सकता, तो ही भ्रम बना रहता है कि मेरी वहां जरूरत है।
आदमी कर्म छोड़ दे तो आलसी; और कर्तापन छोड़ दे तो आलसी - शिरोमणि।
तस्यालस्य धुरीणस्य.......।
तब तो वह धुरीण हो गया, शिखर हो गया आलस्य का। क्योंकि सब परमात्मा पर छोड़ दिया; अब वह जो करवाये करवाये, जो न करवाये न करवाये। अब अपनी कोई आकांक्षा बीच में न रखी। अब उसकी जो मर्जी!
'यह किया गया और यह नहीं किया गया, ऐसे द्वंद्व से मन जब मुक्त हो, तब वह धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के प्रति उदासीन हो जाता है।'
ये आखिरी चरण हैं। आदमी धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष सबसे मुक्त हो जाता है, क्योंकि फिर कोई ही न रही, करने को कुछ रहा ही नहीं। किसी को धन कमाना है, किसी को पुण्य कमाना है। किसी को वासना तृप्त करनी है और किसी को स्वर्ग का सुख लेना है। और किसी को मुक्ति का सुख लेना है। मगर इन सबके पीछे हमारा कर्ता का भाव तो बना ही रहता है कि मुझे कुछ करना है, मेरे बिना किए कुछ भी न होगा।
अष्टावक्र कहते हैं. जिसे यह बात ही भूल गई कि यह किया गया, यह नहीं किया गया, सब बराबर हो गया, हो तो ठीक, न हो तो ठीक; हो गया तो ठीक, न हुआ तो भी उतना ही ठीक-ऐसी