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________________ 'यह विश्व भांति मात्र है और कुछ नहीं है, ऐसा निश्चियपूर्वक जानने वाला वासना रहित और चैतन्य मात्र हो जाता है। तुम करके देखो। तुम पाओगे कि वासना गिरने लगती है। काम जारी रहता है, कामना गिरने लगती है। कृत्य जारी रहता है, कर्ता विदा हो जाता है। सब चलता है, जैसा चलता था; लेकिन भीतर आपाधापी नहीं रह जाती, तनाव नहीं रह जाता। तुम उपकरण मात्र हो जाते हो, निमित्त मात्र! और तब तुम्हें अनुभव होता है कि तुम तो सिर्फ चैतन्य हो साक्षी मात्र हो। यह प्रयोग ध्यान का है। अगर जगत सपना है तो कर्ता होने का तो कोई उपाय न रहा। जब यथार्थ है ही नहीं, तो कर्ता हो कैसे सकते हो? रात तुम सपना देखते हो, उसमें कर्ता तो नहीं हो सकते! सुबह जाग कर तुम पाते हो साक्षी थे कर्ता नहीं। देखा, तुम सुबह उठ कर ऐसा तो नहीं कहते कि सपने में ऐसा-ऐसा किया; तुम कहते हो, रात सपना देखा। तुम जरा भाषा पर खयाल करना। तुम यह नहीं कहते हो सुबह उठ कर कि रात सपने में चोरी की। तुम कहते हो, रात देखा, सपना आया कि चोरी हो रही है मुझसे। रात देखा, सपना आया कि मैं हत्यारा हो रहा हूं। तुम कहते हो मैंने देखा। सपना देखा जाता है; किया थोड़े ही जाता है। बस इस भेद को समझो। सपने के साथ करना जुड़ता नहीं है, सिर्फ देखना जुड़ता है। तो अगर तुम जगत को सपना मात्र मान कर प्रयोग करो तो अचानक तुम पाओगे, तुम चैतन्य मात्र रह गये, द्रष्टा-मात्र, साक्षी-मात्र! 'और ऐसा व्यक्ति ऐसी शांति को प्राप्त हो जाता है मानो कुछ है ही नहीं।' अशांत होने का उपाय ही नहीं बचता। भ्रांतिमात्रमिद विश्व न किचिदिति निश्चयी निर्वासन: स्फूर्तिमात्रो न किचिदिव शाम्यति सब सपने भूमिकायें हैं उस अनदेखे सपने की जो एक ही बार आएगा सत्य की भीख मांगने आंख के द्वार पर। सब सपने भूमिकायें हैं! यह सारा जगत, तुम देखने की कला सीख लो, इसकी ही पाठशाला है। ये इतने दृश्य, ये इतने कथापट, इतने नाटक, सिर्फ एक छोटी-सी बात की तैयारी हैं कि तुम द्रष्टा बन जाओ। सब सपने भूमिकायें हैं उस अनदेखे सपने की जो एक ही बार आएगा सत्य की भीख मांगने
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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