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के प्राण कहते हैं. बदलना है! अब बिना बदले न चलेगा।
मेरी बातें तुम्हें नहीं बदल देंगी। तुम बदलने की स्थिति में आ गये तो मेरी बातें चिनगारी का काम करेंगी; तुम्हारे घर में आग लग जायेगी ।
एक आदमी मर गया। स्वर्ग पहुंचा। परमात्मा ने उससे पूछा नीचे की दुनिया में क्या-क्या किया? उसने कहा. मैं साधु पुरुष था, मैंने कुछ किया नहीं।
परमात्मा ने पूछा. शराब पी?
उसने कहा : आप भी कैसी बातें कर रहे हैं! सदा दूर रहा!
'स्त्रियों से संबंध बनाये?'
उसने कहा. मैं यह सोच भी नहीं सकता कि परमात्मा और ऐसे प्रश्न पूछेगा ! अरे रामायण का कोई प्रश्न पूछो कि गीता का, जो मैं कंठस्थ करता रहा। यह भी क्या बात !
परमात्मा ने कहा अच्छा सिगरेट तो पी ही होगी?
वह आदमी नाराज हो गया। उसने कहा : बंद करो बकवास ! मैं
साधु - पुरुष......
तो परमात्मा ने कहा कि भले आदमी! तब तुझे नीचे भेजा ही क्यों था, झख मारने को ? तो इतने दिन क्या करता रहा ? कहां रहा तू इतने दिन ? और करता क्या था? और अगर यह कुछ भी नहीं किया तो तेरी साधुता का कितना मूल्य होगा? तेरी साधुता एक तरह की कायरता है। तू वापिस
जा।
साधुता तो फल है-बड़े विकास का ! जीवन की सारी पीड़ाओं, सारे संकटों, सारे संघर्षों से गुजर कर साधुता का फल लगता है।
तो मैं जो बातें कह रहा
तभी तुम्हारे हृदय में प्रवेश करेंगी हृदय उनकी मंजूषा बनेगा- वह तुमने जीवन को जाग कर देखा, भोगा, तपे, भटके, द्वार-द्वार ठोकरें खायी। हजार द्वारों पर ठोकरें खा कर ही कोई मंदिर के द्वार तक आ पाता है। और फिर तुम कहीं भी हो, फिर उसकी अहर्निश ध्वनि सुनाई पड़ने लगती है।
तन त्रस्त कहीं मन मस्त वहीं जिस ठौर की मौजे रागों की रस के सागर से झूल झपट जीवन के तट पर टकराती । तन त्रस्त कहीं मन मस्त वहीं जिस ठौर लहरियां रागों की
रस के मानस की गोदी में चिर सुषमा का सावन गातीं ।
फिर तन कहीं भी हो। फिर तुम्हारा शरीर कहीं भी हो, कैसी - ही दशा में हो.... । तन त्रस्त कहीं मन मस्त वहीं