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________________ तुम्हें इतनी भर याद आ जाये तुम्हारे निसर्ग की, तुम्हारे स्वभाव की, तुम्हारे असली घर की! यह जो तुमसे कहे चला जाता हूं तुम्हारे असली घर की प्रशंसा में है। यह जो तुम्हें आज सपनासा लगता है, सपना ही सही, लेकिन तुम्हें पकड़ ले, तुम्हें झकझोर दे। इसकी पुकार तुम्हारे प्राणों में यात्रा का एक आवाहन बन जाये-स्व उदघोष, एक अभियान! तुम्हें इतनी ही याद आ जाये कि निसर्ग से तुम आनंद को ही उपलब्ध हो, वही तुम्हारा असली घर है। और जहां तुमने घर बना लिया वह परदेश है। धर्मशाला को घर समझ लिया है। सराय को घर समझ लिया है। सराय छोड़ने को भी नहीं कह रहा हूं कि तुम सराय को छोड़ दो। कहता हूं: इतना ही जान लो कि सराय है। इतना जानते ही सब रूपांतरण हो जायेगा। निश्चित ही अड़चन भी होगी। क्योंकि जब भी कोई जीवन को बदलने की कोशिश करता है तो अड़चन भी होती है। यह सब सुविधा-सुविधा से नहीं भी हो सकता है। रास्ते पर फूल ही फूल नहीं, कांटे भी हैं। और तुम नहीं समझ पाते बहुत-सी बातें-सिर्फ इसीलिए कि तुम नहीं समझना चाहते, नहीं कि तुम्हारी समझ अधूरी है। तुम डरते हो कि अगर समझ लिया तो फिर चलना पड़े। मैं एक गांव में था। जिनके घर मैं मेहमान था, उनका मुझमें बड़ा रस था। लेकिन मैं चकित हुआ कि उनकी पत्नी कभी आकर बैठी नहीं। उसने, जब मैं आया द्वार पर तो फूलमाला से मेरा स्वागत किया, दीये से आरती उतारी, लेकिन फिर जो गुमी तो पता नहीं चला। तीन दिन वहां था। किसी सभा में नहीं आयी, किसी बैठक में नहीं आयी। घर पर न मालम कितने लोग आये गये, ले नहा आया। घर पर न मालूम कितने लोग आये गये, लेकिन पत्नी का पता नहीं। चलते वक्त वह फिर फूलमाला ले कर आ गयी, तब मुझे खयाल आया। मैंने पूछा कि आते वक्त तेरा दर्शन हुआ था, अब जाते वक्त हो रहा है; बीच में तू दिखाई नहीं पड़ी। उसने कहा अब आपसे क्या कहूं मैं डरती हूं। आपकीबात सुन ली तो फिर करनी पड़ेगी। मैं डरती हूं। अभी मेरे छोटे-छोटे बच्चे हैं। और मैं तो बड़ी भयभीत रहती हूं। मैं तो अपने पति को भी समझाती हूं कि तुम भी सुनो मत। नहीं कि बात गलत है, बात ठीक ही होगी। बात में आकर्षण है, बुलावा है-ठीक ही होगी। मगर मैं अपने पति को भी कहती हूं तुम सुनो मत लेकिन पति मानते नहीं। मैंने कहा तू उनकी फिक्र मत कर। वे तो मुझे कई साल से सुनते हैं कुछ हुआ नहीं। वे तो चिकने घड़े हैं, खतरा तेरा है। चिकने घड़े हैं! वे तो आदी हो गये सुनने के। या उलटे रखे हैं, वर्षा होती रहती है, वे खाली के खाली रह जाते हैं। मैंने कहा. कारण भी है। वे मुझे सुनते है, उस सुनने में धर्म की जिज्ञासा नहीं है। साहित्यकार हैं वे। और जो मैं कहता हूं उसमें साहित्यिक रस है उन्हें। अब यह बिलकुल अलग बात हो गयी। यह तो ऐसा ही हुआ कि मिठाई रखी है और कारपोरेशन का इंस्पेक्टर आया। उसे मिठाई में रस नहीं है। वह मिठाई के आसपास देख रहा है कि कोई मक्खी-मच्छर तो नहीं चल रहे? ढांक कर रखी गयी है कि नहीं? बिक सकती है कि नहीं? उसका अलग रस है। एक वनस्पतिशास्त्री बगीचे में आ जाये तो वह ये फूल नहीं देखता जो सुंदर हो कर खिले हैं,
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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