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हिमालय छोटे पड़ जायें! जब बुद्धों के सिर ने आकाश की अंतिम ऊंचाई को छुआ है, तो सब हिमालय छोटे पड़ गये। और हिमालय की शीतलता साधारण हो गयी। तुम इतने ही ऊंचे होने की संभावना लिये बैठे हो। अभी दिखाई नहीं पड़ती, मानता हूं। तुम्हें भी समझ में नहीं आती। कितना ही कहं तब भी समझ में नहीं आती।
किसी बीज से कहो कि 'घबरा मत, तू छोटा नहीं है, महावृक्ष हो जायेगा; तेरे नीचे हजार बैलगाड़ियां ठहर सकेंगी, ऐसा वट-वृक्ष हो जायेगा। घबरा मत! -हजारों पक्षी तुझ पर विश्राम करेंगे। और थके-मांदे यात्री तेरे नीचे छाया में ठहरेंगे, राहत लेंगे, धन्यवाद देंगे।' वह बीज कसमसायेगा। वह कहेगा. छोड़ो भी, किसकी बातें कर रहे हो? मुझे देखो तो, इतना छोटा, जरा-सा कंकड़ जैसाक्या होने वाला है?
तुम अभी बीज हो। तुम्हें अपनी ऊंचाई का पता नहीं। तुम वट वृक्ष हो सकते हो। तो सारी चेष्टा यह है कि तुम वट-वृक्ष होने में लगो। निश्चित ही इतनी दूर की बात भी नहीं करता कि तुम्हें सुनाई ही न पड़े। तुम्हें सुनाई पड़ जाये इतने करीब लाता हूं लेकिन बिलकुल समझ में आ जाये, इतने नीचे नहीं लाता। तो बस तुम्हारे सिर के ऊपर से निकालता हूं। इतने करीब है कि तुम्हारा मन होगा कि जरा झपट कर ले ही लें हाथ में। कोई ज्यादा दूर भी नहीं मालूम पड़ती, हाथ बढ़ाया कि मिल जायेगी।
वह देखो, आदमी हाथ बढ़ाता है तो सब मिल जाता है! चांद पर हाथ बढ़ाया तो चांद मिल गया। सपने सच हो जाते हैं। तो मैं तो जो कह रहा हूं उसके लिए किसी उपकरण की जरूरत नहीं है, कोई बड़ी टेक्यालॉजी की जरूरत नहीं है। अष्टावक्र जो कह रहे. हैं, उसका पूरा उपकरण ले कर तम पैदा हुए हो। जर सी आंख को ऊपर उठाओ।
मंसूर को सूली लगायी गयी, तो जब उसे सूली के तख्ते पर लटकाया गया तो वह हंसने लगा। तो भीड़ में से किसी ने पूछा. 'मंसूर, हम समझते नहीं, तुम हंस क्यों रहे हो? यह कोई हंसने का वक्त है? लोग पत्थर फेंक रहे हैं, जूते फेंक रहे हैं, सड़े टमाटर फेंक रहे हैं; गालियां दे रहे हैं। और हाथ-पैर तुम्हारे काटे जा रहे हैं और तुम मरने के करीब हो। गर्दन उतार ली जायेगी जल्दी। तुम हंस रहे हो?' उसने कहा. मैं इसलिए हंस रहा हूं कि मैंने प्रभु से कहा है कि हे प्रभु, ये बेचार-कोई लाख आदमी इकट्ठे हो गये थे-इन्होंने कभी आकाश की तरफ नहीं देखा। चलो मेरे बहाने, मुझे सूली पर लटका देखने के लिए ये ऊपर तो देख रहे हैं! चलो मेरे बहाने इन्होंने जरा ऊपर तो देखा!
अगर तुमने ईसा को सूली पर लटकते समय जरा ऊपर देखा तो भी तुम पाओगे कि ऊपर तुम देख सकते हो। तुम्हारी गर्दन में लकवा नहीं लगा हुआ है सिर्फ आदत खराब है।
तो जो तुम्हारी समझ में आ जाये, उसकी तो फिक्र मत करना। जो तुम्हारी समझ में न आये, उससे चुनौती लेना। उसे समझने की कोशिश करना-आयेगा! आ कर रहेगा! आना ही चाहिए! क्योंकि जब अष्टावक्र को आ सकता है तो तुम्हें क्यों नहीं? आठों अंग टेढ़े थे, उनकी अक्ल में आ गया। तुम्हारे तो आठों अंग टेढ़े नहीं हैं। सब तरफ से झुके होंगे, आठ अंग टेढ़े थे, उनको आकाश दिखाई