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में गिरेगा।
तुमने शब्द सुना होगा योगभ्रष्ट। योगभ्रष्ट का क्या अर्थ होता है? योगभ्रष्ट का अर्थ होता है. जो भोग से बढ़ कर योग तक पहुंच गया था लेकिन फिर योग में अटक गया। जो अटका वह फिर गिरेगा, वह योगभ्रष्ट होगा, वह नीचे आ जाएगा। योग आओगे या पार जाओगे। रुकना होता नहीं है; या तो आगे बढ़ो, या पीछे फेंक दिए जाओगे। जगत गति है, इसमें रुक नहीं सकते। इसमें रुके कि या तो पीछे हटने लगोगे, या आगे बढ़ना पड़ेगा।
एडिंग्टन ने लिखा है कि जगत में स्थिति जैसी कोई स्थिति नहीं है। यहां कोई चीज स्थिर तो है ही नहीं। अब ये वृक्ष हैं, या तो बढ़ रहे हैं या घट रहे हैं! बच्चा बड़ा हो रहा है, जवान घट रहा है, का घट रहा है। लेकिन घटना-बढ़ना चल रहा है। तुम ऐसा नहीं कह सकते कि एक आदमी जवानी में रुक गया है। रुकना यहां होता ही नहीं। जो जवानी में है, वह का हो ही रहा है-पता चले न चले, आज पता क्ले कल चले। लेकिन जो जवान है वह का हो रहा है। जो बच्चा है वह जवान हो रहा है। जो बूढ़ा है वह मरने में उतर रहा है। जो मरने में उतर रहा है वह नए जन्म की तलाश कर रहा है। वर्तुलाकार घूम रहा है जीवन का चक्र।
बढ़ते जाओ। योग से बढ़ना है आगे। उसी स्थिति का नाम साखी, साक्षी, अतिक्रमण। उसके पार कुछ भी नहीं है, क्योंकि साक्षी के पार होने का कोई उपाय ही नहीं। साक्षी का अर्थ है. आखिरी जगह आ गई। जिसके दवारा तुम सब देखते हो, अब उसे देखने का तो कोई उपाय नहीं है। तुम आखिरी पड़ाव पर आ गए, केंद्र पर आ गए।
तो तीन स्थितियां हैं भोगी की, योगी की, और जो अतिक्रमण कर गया कहो, महायोगी की या महाभोगी की। कोई भी शब्द उपयोग कर सकते हो, लेकिन वह दोनों से भिन्न है।
जिंदगी न जन्म के साथ पैदा होती है, न मृत्यु के साथ मरती है जन्म ले कर वह जिसे खोजती है मर कर भी उसी की तलाश करती है
और ईश्वर आसानी से हमारी पकड़ में नहीं आता उसकी कृपा यह है कि वह हमें जन्म देता और फिर मारता है जन्म और मरण दोनों खराद के चक्के हैं ईश्वर हमें तराश-तराश कर संवारता है और जब हम पूरी तरह संवर जाते हैं ईश्वर अपने-आपको हमें सौंप देता है हमारी मुक्तिया केंद्र से अलग नहीं रहती ईश्वर या तो उनमें विलय होता है