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अक्षर में जागा। जो उसमें जाग गया जिसका कोई क्षय नहीं होता-अस्मृत अक्षर! वह तुम्हारे भीतर है। यह बड़े मजे की बात है, देवनागरी लिपि में वर्णमाला को हम कहते हैं अक्षर-अ, ब, स, क, ख, ग-अक्षर। फिर जब दो अक्षर से मिल कर कोई चीज बन जाती है तो उसको कहते हैं शब्द।'रा' अक्षर'म' अक्षर-'राम' शब्द।
शब्द तो जोड़ है दो का; अक्षर, एक का अनुभव है। अल्फाबेट अर्थहीन शब्द है; अक्षर, बड़ा सार्थक। अक्षर का अर्थ होता है जब एक है तो फिर कोई विनाश नहीं; जब दो हैं तो विनाश होगा। जहां जोड़ है वहा टूट होगी; जहां योग है, वहां वियोग होगा। इसलिए तो शब्द से अक्षर को कहना असंभव है। इसलिए तो सत्य को शब्द में नहीं कहा जा सकता। क्योंकि सत्य है एक और शब्द बनते हैं दो से।
इसलिए हिंदुओं ने उस परम सत्य को प्रगट करने के लिए 'ओम' खोजा। और उसको ओम' नहीं लिखते। अगर'ओम' लिखें तो दो अक्षर हो जाएंगे। उसके लिए अलग ही प्रतीक बनाया-'ओं-ताकि वह अक्षर रहे, एक ही रहे। ऐसे तो तीन हैं उसमें अ, उ, म, ओम' बनाने में तीन अक्षर आ गए। लेकिन तीन आ गए तो शब्द हो गया। शब्द हो गया तो असत्य हो गया। शब्द हो गया तो जोड़ हो गया जोड़ हो गया तो टूटेगा, बिखरेगा। तो फिर हमने एक खूबी की-हमने उसके लिए एक अलग ही प्रतीक बनाया, जो वर्णमाला के बाहर है। तुम किसी से पूछो ओं' का अर्थ क्या है"ओं का कोई अर्थ नहीं।
शब्द का अर्थ होता है, अक्षर का कोई अर्थ नहीं होता।'ओं तो अर्थहीन है, प्रतीक मात्र है-उस परम का। वह एक जब टूटता है तो तीन हो जाते हैं इसलिए त्रिमूर्ति। फिर तीन तेरह हो जाते, फिर तो बिखरता जाता है। उस एक का नाम अक्षर।
धागे में मणिया हैं कि मणियों में धागा ज्ञाता वह जो शब्द में सोया अक्षर में जागा। दर्पण में बिबित छाया से लड़ते-लड़ते हो गया है लहूलुहान सत्या आंख मूंदे तो आंख खुले।
आंख मुंदे तो आंख खुले! आंख खोल कर तुमने जो देखा है, वह संसार है। आंख मूंद कर जो देखोगे वही सर्व, वही परमात्मा, वही सत्य।
आंख मुंदे तो आंख खुले।