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आदमी, देखो शूद्र सामने से निकल गया तब दर्पण गंदा हो गया, क्योंकि शूद्र की छाया पड़ गई दर्पण में! दर्पण तो स्वच्छ ही रहता है। प्रतिबिंबों से कोई दर्पण गंदे नहीं होते।
साक्षी सदा स्वच्छ है। ऐसी अवस्था को हम परमहंस अवस्था कहते रहे हैं। जैसे हंस धवल, स्वच्छ, मानसरोवर में तिरता - ऐसे मन के सागर में साक्षी परमहंस हो जाता है।
अमल धवल गिरि के शिखरों पर
बादल को घिरते देखा है!
छोटे छोटे मोती जैसे
अतिशय शीतल वारि-कणों को मानसरोवर के उन स्वर्णिम कमलों पर गिरते देखा है! तुंग हिमाचल के कंधों पर छोटी-बड़ी कई झीलों के श्यामल शीतल अमल सलिल में समतल देशों से आ- आ कर पावस की उमस से आकुल
तिक्त - मधुर विषतंतु खोजते हंसों को तिरते देखा है!
जैसे दूर से दूर देशों से उड़ा हुआ हंस आए, मानसरोवर पहुंचे, तिरने लगे मानसरोवर पर, स्वच्छ धवल - ऐसी ही साक्षी की दशा है।
शरीर - घाट! मन -सरोवर ! और वह साक्षी - हंस, परमहंस !
अमल धवल गिरि के शिखरों पर
बादल को घिरते देखा है !
छोटे छोटे मोती जैसे
अतिशय शीतल वारि-कणों को मानसरोवर के उन स्वर्णिम कमलों पर गिरते देखा है! तुंग हिमाचल के कंधों पर छोटी-बड़ी कई झीलों के श्यामल शीतल अमल सलिल में समतल देशों से आ- आ कर पावस की उमस से आकुल तिक्त - मधुर विषतंतु खोजते