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________________ तो तुम 'ना' कैसे कह सकोगे! इसी आदमी की जिंदगी भर से तलाश थी, अब ये मिले-तुम 'ना' कैसे कह सकोगे रू तुम 'ही' कहने लगोगे। जब तुम दो-चार बातो में 'ही' कह दो, तब डेल कारनेगो कहता र वह बात छेड़ना जिसमें कि तुम्हें डर है कि यह आदमी 'ना' कह दे। तीन-चार-पांच बातों में 'हा' कहने के बाद 'हा' कहना सुगम हो जाता है। वह रपटने लगता है। तुमने रास्ता बना दिया। इसलिए तो कहते हैं, मक्खन लगा दिया! रपटने लगता है। फिसलने लगा। अब तुम उसे किसी गड्डे में ले जाओ, वह हर गड्डे में जाने को राजी है। अब ले जाने की जरूरत नहीं है, वह तत्पर है, खुद ही जाने को राजी है। किसी को गाली दे दो, किसी को नाराज कर दो, वह तत्क्षण क्रोध से भर गया, आग पैदा हो गई। ये घटनाएं तत्क्षण घट रही हैं। इन घटनाओं में विवेक नहीं है। गुरजिएफ कहता था. 'मेरे पिता ने मरते वक्त मुझे कहा, अगर कोई गाली दे तो उससे कहना, चौबीस घंटे का समय चाहिए; मैं आऊंगा चौबीस घंटे बाद, जवाब दे जाऊंगा।' और गुरजिएफ ने कहा है कि फिर जीवन में ऐसा मौका कभी नहीं आया कि मुझे जवाब देने जाना पड़ा हो, चौबीस घंटे काफी थे। या तो बात समझ में आ गई कि गाली ठीक ही है और या बात समझ में आ गई कि गाली व्यर्थ है, जवाब क्या देना! तो या तो सीख लिया गाली से कुछ कि अपने में कोई कमी थी जो गाली जगा गई, चौंका गई, चोट कर गई, बता गई-धन्यवाद दे लिया; और या समझ में आ गया कि यह आदमी पागल है, अब इस पागल के पीछे अपने को क्या पागल होना! गुरजिएफ कहता था कि बाप के मरते वक्त की इस छोटी-सी बात ने मेरा सारा जीवन बदल दिया। चौबीस घंटा मांगना क्रोध के लिए बड़ी अदभुत बात है। चौबीस सेकेंड काफी हैं, चौबीस घंटा तो बहुत हो गया। क्रोध तो हो सकता है तत्क्षण, क्योंकि क्रोध हो सकता है केवल बेहोशी में। चौबीस घंटे में तो काफी होश आ जाएगा। चौबीस घंटे में तो समय बीतेगा, जाते होगी। इसलिए मैं तुमसे कहता हूं. शुभ करना हो, तख्ता करना लेना, अशुभ करना हो थोड़ी प्रतीक्षा करना, रुकना, कहना कल, परसों! क्योंकि डर यह है कि साधारणत: तुम शुभ को तो कल पर टालते हो, अशुभ को अभी कर लेते हो।'शुभ को कल पर टाला कि गया। क्योंकि शुभ तभी हो सकता है जब तुम्हारे भीतर प्रगाढ़ भाव उठा हो। और अशुभ भी तभी हो सकता है जब तुम्हारे भीतर प्रगाढ़ तंद्रा घिरी हो। अगर तुम रुक गए तो प्रगाढ भाव भी चला जाएगा। अगर रुक गए तो प्रगाढ़ तंद्रा भा चली जाएगी। इसलिए शुभ तत्क्षण और अशुभ कभी भी कर लेना, कभी भी टाल देना। 'जो स्वभाव से शून्यचित्त है, पर प्रमोद से विषयों की भावना करता है वह सोता हुआ भी जागते के समान है। वह पुरुष संसार से मुक्त है। संयोग, वियोग, प्रतिक्रियाएं नहीं है उनका अपना कोई अस्तित्व संवेदना, मरीचिका पुदगल की आत्मा का गुण निर्वेद है। आत्मा किसी भी चीज से छई हुई नहीं अछूती है, कुंआरी है। और जो भी हो रहा है खेल, ना
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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