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________________ कोई आदमी धक्का मार दे, बस होश खो गया! दौड़ पड़े, पकड़ ली उसकी गर्दन! कोई तुम्हारी बटन दबा दे जैसे बस! बिजली के पंखे की तरह हो तुम, कि बिजली के यंत्र की तरह। दबाई बटन कि पंखा चला। पंखा यह नहीं कह सकता कि अभी मेरी चलने की इच्छा नहीं। पंखा मालिक कहां अपना! पंखा व है। जब तुम्हारी कोई बटन दबा देता है, जरा-सी गाली दे दी, धक्का मार दिया कि तुम बस हुए क्रोधित-तो तुम भी यंत्रवत हो, जाग्रत नहीं अभी।। बुद्ध को कोई गाली देता है तो बुद्ध शांति से सुन लेते हैं। वे कहते हैं कि बड़ी कृपा की आए; लेकिन जरा देर कर दी। दस साल पहले आते तो हम भी मजा लेते और तुम्हें भी मजा देते! जरा देर करके आए, हमने गाली लेनी बंद कर दी है। तुम लाए, जरा देर से लाए, मौसम जा चुका। अब तुम इसे घर ले जाओ। दया आती है तुम पर। क्या करोगे इसका? क्योंकि हम लेते नहीं हैं। देना तुम्हारे हाथ में है, देने के तम मालिक हो, लेकिन लेना हमारे हाथ में है। तुमने गाली दी, हम नहीं लेते, तुम क्या करोगे? लेकिन तुमने कभी देखा कि जब कोई गाली देता है तो लेने का खयाल आता है, न लेने का खयाल भी आता है? नहीं आता! इधर दिया नहीं कि उधर गाली पहुंच नहीं गयी। एक क्षण भी बीच में नहीं गिरता। तीर की तरह चुभ जाती है बात। वहीं तत्क्षण तुम बेहोश हो जाते हो, मूर्छित हो जाते हो। उस मूर्छा में तुम मार सकते हो पीट सकते हो, हत्या कर सकते हो। लेकिन तुमने की, ऐसा नहीं है। तुम मूर्छित हो। एक आदमी, अकबर की सवारी निकलती थी, छप्पर पर चढ़ कर गाली देने लगा। पकड़ लाए सैनिक उसे। अकबर के सामने दूसरे दिन उपस्थित किया। अकबर ने पूछा कि 'तूने ये गालियां क्यों बकी, क्या कारण है? यह अभद्रता क्यों की?' उस आदमी ने कहा 'माफ करें, मैंने कुछ भी नहीं किया। मैं शराब पी लिया था। मैं होश में नहीं था। अगर आप मुझे दंड देंगे उस बात के लिए तो कसूर किसी ने किया, दंड किसी को दिया-ऐसी बदनामी होगी। शराब पीने के लिए चाहें तो मुझे दंड दे लें-शराब पीना कोई कसूर न था--लेकिन गाली देने के लिए मुझे दंड मत देना, क्योंकि मैंने दी ही नहीं, मुझे पता ही नहीं। आप कहते हैं तो जरूर गाली मुझसे निकली होगी, लेकिन शराब ने निकलवाई है। मुझे कुछ पता नहीं है। मैं कैसे गाली दे सकता हूं! और अकबर को भी बात समझ में आई। छोड़ दिया गया वह आदमी। इसलिए छोटे बच्चों पर अदालत में मुकदमे नहीं चलते, पागलों पर मुकदमे नहीं चलते। अगर पागल हत्या कर दे और मनोवैज्ञानिक सर्टिफिकेट दे दें कि यह पागल है तो मुकदमा चलाने का कोई अर्थ नहीं है। क्योंकि जो अपने होश में नहीं है, उस पर क्या मुकदमा चलाना; उसने तो बेहोशी में किया है। लेकिन तुम अगर गौर करो तो तुम सब जो कर रहे हो वह बेहोशी में ही है। चोर तो बेहोश हैं ही, मजिस्ट्रेट भी बेहोश हैं। चोर तो बेहोश हैं ही, चोर को पकड़ने वाला सिपाही भी उतना ही बेहोश है। होश और बेहोशी का अर्थ ठीक से समझ लेना। बेहोशी का अर्थ है : तुमने निर्णयपूर्वक नहीं किया
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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