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राजी हो ।
संन्यास साहस है।
और तुम्हारे भीतर जो नई-नई अनुभूइतयों की तरंगें बह रही हैं, वे तरंगें खो न जाएं। क्योंकि तरंगें आती हैं; अगर तुम उन तरंगों को जीवन में स्वीकार न करो तो खो जाती हैं। तरंगें उठती हैं; अगर उन तरंगों के साथ तुम अपने जीवन को रूपांतरित न करो, तो तरंगें सदा नहीं उठेंगी। आएंगी, खो जाएंगी। धीरे- धीरे उन तरंगों के भी आदी हो जाओगे। अगर तुम किसी मुक्तपुरुष की वाणी को बार-बार सुनते रहो, सुनते रहो और कुछ न करो, तो धीरे- धीरे तुम सुनने के आदी हो जाओगे। फिर चोट न पड़ेगी। फिर तुम्हारे भीतर कोई हलन - चलन न होगा, आख से आंसू न बहेंगे।
जो मित्र पूछे हैं, अभी नया-नया संपर्क है। इस नए संपर्क में नई अनुभूतियां उठ रही हैं। इसके पहले कि ये अनुभूतियां अपना अर्थ खो दें, इसके पहले कि ये तरंगें जड़ हो जाएं, इसके पहले कि तुम इन तरंगों को भी धीरे- धीरे स्वीकार कर लो, और ये भी पुरानी पड़ जाएं-छलांग ले लेना।
'कभी रोता हूं कभी आपको निहारता रह जाता हूं ।
रोना खबर है इस बात की कि संबंध हृदय से बन रहा है। बुद्धि से बने तो कभी रोना नहीं आता। बुद्धि से अगर संबंध बने तो व्यक्ति ज्यादा से ज्यादा सिर हिलाता है कि ठीक; या गलत, तो सिर हिलाता है कि गलत। बस खोपड़ी थोड़ी-सी हिलती है। आंसुओ का कोई संबंध सिर से नहीं है। आंसू तुम्हारी खोपड़ी के भीतर से नहीं आते। आंखों से बहते हैं- आते हृदय से हैं, आते अंतस्तल से हैं। आंसू ज्यादा सार्थक हैं- बजाय धारणाओं के, विचारों के, संप्रदायों के आंसू ज्यादा सार्थक हैं। आंसू खबर दे रहे हैं इस बात की, हृदय पर चोट पड़ी, कोई भीतर कैप गया है। इसके पहले कि आंसू सूख जाएं, इसके पहले कि तुम्हारी आंखें सूख जाएं- कुछ करना। आंसुओ को शुभ संकेत मानो, और उनके इशारों पर चलो। अगर तुम आसुरों के इशारे पर चल सके आंसुओ को तुमने अंगीकार किया, आंसुओ का इंगित समझा, उनकी भाषा पहचाने और कुछ तुमने किया - तो जल्दी ही तुम पाओगे, आंसुओ के पीछे छिपी हुई एक अनूठी हंसी तुम्हारे पूरे जीवन पर फैल जाएगी।
संन्यास मेरे लिए कोई उदास बात नहीं है। संन्यास तो हंसता-फूलता, आनंद-मग्न, जीवन का एक नया वितान, एक नया विकास है। तुम बंद हो, कुंद हो, छोटे हो, पड़े हो कारागृह में शरीर के, मन के! संन्यास तो इस बात की खबर है कि पूरा आकाश तुम्हारा, सब तुम्हारा! भोगो ! जागो! यह जो रस बरस रहा है जगत में, यह तुम्हारा है, तुम्हारे लिए बरस रहा है। ये चांद-तारे तुम्हारे लिए चलते हैं। ये फूल तुम्हारे लिए खिलते हैं। तुम इन्हें भोगो! तुम इस रस में डूबो ।
अगर प्रेम का मार्ग पकड़ो, तो भोगो। अगर ज्ञान का मार्ग पकड़ो, तो जागो। दोनों सही हैं, दोनों पहुंचा देते हैं। और मेरे संन्यासियों में दोनों तरह के संन्यासी हैं।
वस्तुतः मेरा संन्यास कोई संप्रदाय नहीं है। सारे जगत के धर्मों से लोग आए हैं। ऐसी घटना कभी पृथ्वी पर घटी नहीं है। तुम ऐसा कोई स्थान न पा सकोगे जहां तुम्हें हिंदू मिल जाएं, मुसलमान मिल जाएं, ईसाई मिल जाएं, यहूदी मिल जाएं बौद्ध मिल जाएं, जैन मिल जाएं, सिक्ख मिल जाएं,