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क्षण तुम्हारा उपाय तुम्हारे साथ पैदा हुआ है तुम्हारे भीतर पड़ा है; तुम्हारे अंतस्तल में प्रतीक्षा कर रहा है। तो शायद सत्य का मार्ग तुम्हारा मार्ग होगा। तब नारद के पास फड़कना मत। मीरा कितने ही गीत गाए, तू म अपने कान बंद कर लेना, उसमें उलझना मत। क्योंकि वह उलझाव महंगा पड़ जाएगा। जो तुम्हारे भीतर से आए, सहजस्फूर्त हो-बस वही।
जो जहां भी है। समर्पित है सत्य को। ये फूल और यह धूप लहलहाते खेत, नदी का कूल क्या प्रार्थनाएं नहीं हैं? यह व्यक्तित्व निवेदित
ऊर्ध्व के प्रति क्या नहीं है? गौर से देखना फूल को वृक्ष पर-वृक्ष की प्रार्थना है। यह वृक्ष का ढंग है प्रार्थना करने का। आदमी ही थोड़े प्रार्थना करता है। तुम तभी मानोगे जब वृक्ष जाएगा मंदिर में और गंगाजल चढाका? तभी तुम मानोगे? जब वृक्ष पानी भर कर लाएगा और शंकर जी पर चढ़ाका, तभी तुम मानोगे? और वृक्ष रोज अपने फूल झराता रहा शंकर पर, अपने पत्ते गिराता रहा, अपने प्राणों से पूजा करता रहा, इसे तुम स्वीकार न करोगे? जो जहां है.।
जो जहां भी है समर्पित है सत्य को। ये फूल और यह धूप लहलहाते खेत, नदी का कूल
क्या प्रार्थनाएं नहीं हैं? प्रार्थनाएं अलग-अलग होंगी, अलग-अलग ढंग हैं। वैविध्य है जगत में। और सुंदर है जगत-वैविध्य के कारण।
तो जब मुसलमान मस्जिद में झुके तो तुम यह मत सोचना कि गलत है। और मंदिर में जब हिंदू घंटियां बजाए तो तुम नाराज मत होना। और चर्च में जब ईसाई गुनगुनाए या बौद्ध अपने पूजागृह में बैठ कर ध्यान करे, तो तुम जानना : जो जहां है, वहीं समर्पित है सत्य को। और धूप और फूल भी प्रार्थना कर रहे हैं। सारा जगत प्रार्थना-मग्न है। झरने अपना गीत गुनगुना रहे हैं।
स्त्रिया स्त्रियों के ढंग से जाएंगी, पुरुष पुरुष के ढंग से जाएंगे। और एक बार तुम्हें यह समझ में आ जाए कि मेरा ढंग मुझे खोज लेना है तो तुम दूसरी बात छोड़ दोगे, तुम दूसरों को घसीटने की आदत छोड़ दोगे।
दुनिया में बड़ा अहित हुआ है। पत्नी जिस मंदिर में जाती है, पति को भी ले जाती है। बाप जिस मंदिर में जाता है, बेटे को भी ले जाता है। इससे दुनिया में इतना अधर्म है। क्योंकि लोगों को