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ठीक बात है। जरूरत भी क्या है? एक गुरु काफी है। एक गुरु ही मोक्ष पहुंचा देता है दो की जरूरत क्या है?' तू यहां आई क्यों, मैंने उससे पूछा। वृद्ध महिला है। आने की कोई जरूरत ही न थी। गुरु तुझे मिल गए।
वह जरा हैरान हुई क्योंकि वह आई तो इसीलिए है। अब मजा यह है कि वह सीखना भी मुझसे चाहती है, लेकिन अपने पुराने ढांचे को छोड़ना भी नहीं चाहती। तो मैंने कहा कि मेरे द्वार बंद। जब जीसस के दवार तेरे लिए खुले हैं तो पर्याप्त है, जहां हम ले जाएंगे, वहीं जीसस तुझे ले जाएंगे। तू उसी रास्ते से चल।
उसने कहा : अब जीसस को तो मरे दो हजार साल हो गए। अब उनसे तो मैं पूछने जाऊं कहां?' तो फिर मैंने कहा: 'मुझसे पूछना हो तो उनको छोड़ो। फिर इतनी हिम्मत करो। मुर्दा को छोड़ो!'
आदमी अहंकार के कारण बड़े उपद्रव में पड़ा है। वह बोली कि यह तो कैसे हो सकता है? मैं कैथोलिक ईसाई हूं और बचपन से ही ईसाई धर्म को मैंने माना है।
मैंने कहा: मानो! मैं अभी भी मना नहीं करता। मैं किसी धर्म के विपरीत हूं ही नहीं। अगर तुम्हें कुछ हो रहा है, तुम्हारे जीवन में फूल खिल रहे हैं, मेरा आशीर्वाद! खूब फूल खिले। मैं कहता नहीं कुछ, लेकिन तुम्हीं अपने-आप आयी हो और खबर दे रही हो कि फूल नहीं खिले हैं, अब तक की ईसाइयत काम नहीं आयी है। मैं यह भी नहीं कहता कि ईसाइयत गलत है। मैं इतना ही कह रहा हूं कि तुम्हारे काम नहीं आई है तुमसे मेल नहीं बैठा है। इस सत्य को तो देखो! इस सत्य को देखे बिना कैसे नये का अंगीकार होगा? पुराने से साफ-साफ निपटारा, कर लेना चाहिए।
नये के स्वागत के पूर्व पुराने को विदा करो| पुराना घर में बैठा रहे और नये का तुम स्वागत करने जाओगे, पुराना उसे अंदर न आने देगा। क्योंकि पुराना बीस साल, तीस साल, चालीस साल, पचास साल रह चुका है। इतनी असानी से कोई अपना स्थान नहीं छोड़ता। बड़ी जद्दोजहद होगी। तुम पहले पुराने को अलविदा कहो।
एक ही बात खयाल रखो कि हुआ है पुराने से कुछ तो कोई जरूरत नहीं नये के साथ जाने की क्योंकि नये -पुराने से क्या लेना-देना? सत्य कोई नया होता कि पुराना होता? सत्य तो बस सत्य है। अगर तुम्हारे जीवन में सार की वर्षा हुई है अमृत का झरना बहा है तो कितने ही प्राचीन के कारण हुआ हो, हो गया! तुम धन्यभागी हो, नाचो, उत्सव मनाओ! नहीं हुआ तो हिम्मत जुटाओ पुराने को विदा करो। पुराने की विदा प्रथम चरण है नये के स्वागत के लिए।
लेकिन तुम हो चालाक। तुम हो हिसाब लगाने वाले। तुम सोचते हो 'पुराना भी बना रहे, नये में भी कुछ सार हो तो इसको भी हथिया लो।' यह नहीं होता। इससे तुम्हारी दुविधा बढ़ेगी। दो नाव पर कभी सवार मत होना, अन्यथा टूटोगे और मरोगे। दो घोड़ों पर सवार मत हो जाना, अन्यथा प्राण गवाओगे। पुराने और नये का साथ-साथ हिसाब मत बांधना।
मंत्र धुंधवाए हवन के दर्द अकुराए चमन के