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है कि है तो यह अब्राहम लिंकन!
हमारी भी ऐसी दशा है। जन्मों-जन्मों..। उसने तो एक ही साल काम किया था अब्राहम लिंकन का, हम जन्मों-जन्मों से कर्ता और भोक्ता बने हैं। कोई लाइ-डिटेक्टर हमें पकड नहीं सकता। अगर हम कहें भी लाइ-डिटेक्टर पर खड़े हो कर कि हम साक्षी हैं, लाइ-डिटेक्टर कहेगा, यह आदमी झूठ बोल रहा है-कर्ता- भोक्ता है। साक्षी-बिलकुल नहीं!
हमारी आदत लंबी और प्राचीन हो गयी है-पुरातन है! सदियों से चली आती है।
जब कोई व्यक्ति जागता है, तो भागता थोड़े ही है कहीं, भागेगा कहां? जाग कर इतना ही अंतर पड़ता है। यह अंतर बहुत छोटा और बहुत बड़ा दोनों एक साथ। यह किसी को पता भी नहीं चलेगा, ऐसा अंतर है। यह तो तुम गुरु के सामने खड़े होओगे, उसके दर्पण में ही झलकेगा, और किसी को पता भी नहीं चलेगा। शायद तुम्हारी पत्नी भी न पहचान पाये कि कब तुम कर्ता से साक्षी हो गये। कब, किस घड़ी में, किस क्षण में क्रांति घटी-शायद तुम्हारा पति भी न पहचान पाये तुम्हारे बच्चे भी न जान पायें। जो तुम्हारे हृदय के बहुत करीब हैं वे भी न जान पायेंगे। क्योंकि यह क्रांति बड़ी सूक्ष्म है-सूक्ष्म, अति-सूक्ष्म है यह। इतनी बारीक क्रांति है कि या तो तुम जानोगे या गुरु जानेगा। इसके अतिरिक्त कोई भी नहीं पहचान सकेगा।
क्योंकि रहोगे तो तुम वैसे के वैसे ही। दुकान करते थे तो उस दिन क्रांति के बाद भी तुम दुकान पर जा कर बैठोगे, तराजू से सामान तौलोगे, बेचोगे, ग्राहकों से मोल-तोल करोगे-सबकरोगे। घर आओगे; बच्चों के सिर थपथपाओगे, पत्नी के लिए फूल या आइस्कीम खरीद लाओगे-वह सब करोगे। सब वैसा ही चलता रहेगा। शायद पहले से भी अच्छा चल पड़ेगा। क्योंकि अब एक गहन समझ का जन्म हुआ है। अब तुम किसी को व्यर्थ कष्ट न देना चाहोगे।
__ लेकिन भीतर एक क्रांति घटित हो गयी। अब तुम दूर-दूर हो। अब तुम बहुत दूर हो। अब तुम कर रहे हो, लेकिन करने में अब कोई गंभीरता नहीं है। अब नाटक है। अब तुम जाग गये कि यह सब रामलीला है। अब तुम्हें होश आ गया।
इस होश को तो कोई होश वाला ही पहचानेगा और परखेगा। इसलिए गुरु की बड़ी जरूरत है, क्योंकि गुरु ही साक्षी हो सकता है।
जनक ने कहा. 'भोगलीला के साथ खेलते हुए आत्मज्ञानी धीरपुरुष की बराबरी संसार को सिर पर ढोने वाले मूढ़ पुरुषों के साथ कदापि नहीं की जा सकती।'
देखना, उत्तर में ये 'मैं को बीच में नहीं लाये। अगर थोड़ा भी अज्ञान बचा होता तो वे कहते, 'क्या आप कहते हैं? मेरी बराबरी, और संसार के मूढ पुरुषों से करते हैं? '-ऐसा उत्तर होता। उत्तर बिलकुल ऐसा ही होता, लेकिन जरा-सा फर्क होता कि 'आप मेरी तुलना मूढ़ों से करते हैं मैं ज्ञानी, मुझे ज्ञान का उदय हो गया!' नहीं, वह तो बात ही नहीं उठायी। जिसे ज्ञान का उदय हो गया, उसका 'मैं तो अस्त हो गया। अब मैं की बात उठाने का कोई कारण न रहा। अब तो सीधी बात की-सिद्धात की। सीधी बात की-सत्य की, सूत्र की।