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ढोनेवाले मूढ़ पुरुषों के साथ कदापि नहीं हो सकती। '
और परीक्षा को व्यक्तिगत रूप से न लिया। उत्तर देखते हैं! उत्तर में यह नहीं कहा कि आप मेरी बराबरी अज्ञानियों से कर रहे हैं! 'मुझको तो बीच में लाये ही नहीं। 'मैं' को तो उठाया ही नहीं । मैं का कोई संबंध न बांधा। उत्तर बिलकुल निर्वैयक्तिक है।
कहा कि 'भोगलीला के साथ खेलते हुए आत्मज्ञानी धीरपुरुष की बराबरी संसार को सिर पर ढोनेवाले मूढ़ पुरुषों के साथ कदापि नहीं हो सकती। '
दोनों संसार में खड़े हैं। अज्ञानी भी खड़ा है, ज्ञानी भी खड़ा है। दोनों बाजार में खड़े हैं। लेकिन दोनों के खड़े होने के ढंग में फर्क है। दोनों का स्थान भला एक हो, दोनों की स्थिति अलग है। अज्ञानी तो सिर पर ढो रहा है, ज्ञानी ने पोटली रथ पर उतार कर रख दी। फिर से तुम्हें वह कहानी कह दूं। बार-बार कहता हूं क्योंकि बड़ी महत्वपूर्ण है।
सम्राट चला आ रहा है शिकार खेल कर अपने रथ में बैठा हुआ, देखता है एक भिखारी को पोटली लिये हुए रास्ते पर बिठा लेता है रथ में कि छोड़ दूंगा जहां तुझे उतरना हो; कहां तुझे उतरना है ? भिखारी बड़ा सकपकाता है। बैठ तो जाता है रथ में डरा-डरा ! कहना तो चाहता है कि नहीं महाराज, मैं और रथ में बैठूं नहीं, नहीं! मगर इतनी भी हिम्मत नहीं, 'नहीं' कहने से कहीं सम्राट नाराज न हो जाये! उस स्वर्ण –सिंहासन पर सिकुड़ा - सिकुड़ा बैठा है, घबड़ाया हुआ बैठा है कि कहीं मेरे कारण सब गंदा न हो जाये। मैं दीन-हीन, इस राजरथ पर बैठूं ! लेकिन पोटली उसने अपने सिर पर उठा रखी है।
सम्राट थोड़ी देर बाद कहता है : अरे पागल, पोटली नीचे रख ! अब पोटली सिर पर क्यों रखे है? वह कहता है : नहीं महाराज, इतनी ही दया क्या कम है कि आपने मुझे बैठा लिया! और अपनी पोटली का व्रजन भी आपके रथ पर रखूं ? नहीं-नहीं, यह ज्यादती हो जायेगी। यह तो अशिष्टाचार हो जायेगा। माना कि मैं दीन-हीन गरीब आदमी हूं इतनी तो बुद्धि मुझे भी है। पोटली तो मैं सिर पर ही रखूंगा, आप कुछ भी कहो। मैं बैठ गया, यही बहुत-बैठना भी नहीं था मुझे। डर के मारे बैठ गया हूं कि कहीं आप नाराज न हो जायें। मेरे पैर तो चलने के लिए ही बने हैं। मैं तो गरीब आदमी हूं यह रथ मेरे लिए नहीं है। मुझे बड़ी दिक्कत हो रही है। तो कम से कम पोटली तो मुझे सिर पर रखे रहने दें। इतना बोझ आपके रथ पर और डालूं - नहीं, यह मुझसे न हो सकेगा।
अब तुम रथ में बैठे हो, पोटली सिर पर रखो कि नीचे - बराबर है।
क कहते हैं. ज्ञानीपुरुष भी रथ में बैठता, अज्ञानी भी रथ में बैठता। अज्ञानी पोटली सिर पर रखे रहता है, ज्ञानी पोटली नीचे उतार कर रख देता है।
'संसार को सिर पर ढोने वाले मूढ़ पुरुषों के साथ ज्ञानी पुरुष की समानता कदापि नहीं की जा सकती।'
क्यों? भोगलीला के साथ खेलते हुए...। वह जो ज्ञानी पुरुष है उसके लिए तो सब लीला हो गया, सब खेल हो गया। वह तो इस जगत में खेल की तरह सम्मिलित है। इस जगत में उसे कोई