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संसार को सिर पर ढोने वाले मूढ़ पुरुषों के साथ कदापि नहीं हो सकती है। '
पहला शब्द है. 'हंत!' उसमें सारी श्रद्धा उंडेल दी। 'हंत' बड़ा प्यारा शब्द है। जैनों में उसका पूरा रूप है ' अरिहंत'। बौद्धों में उसका रूप है 'अर्हत | हिंदू संक्षिप्त 'हंत' का उपयोग करते हैं। हंत का, अरिहंत का, अर्हत का अर्थ होता है, जिसने अपने शत्रुओं पर विजय पा ली - काम, क्रोध, लोभ, मोह, भोग, त्याग, इहलोक, परलोक! जिसने अपनी समस्त आकांक्षाओं पर विजय पा ली, जो निष्काक्षा को उपलब्ध हुआ है, वही है अरिहंत ।
सूत्र की उदघोषणा करते हैं जनक, अष्टावक्र को अरिहंत कह कर - परम श्रद्धा से! इससे बड़ा शब्द नहीं है भाषा में। अरिहंत का अर्थ होता है. भगवान, अरिहंत का अर्थ होता है. आखिरी चैतन्य की दशा, जिसके पार फिर कुछ भी नहीं है। जो-जो हटाना था, हटा दिया। जो-जो गिराना था, गिरा दिया। जो - जो मिटाना था, मिटा दिया। जो जो जीतना था, जीत लिया। अब कुछ भी नहीं बचा ! शुद्ध चैतन्य का सागर रह गया। वैसी दशा का नाम है 'अरिहंत' ।
और हंत का एक अर्थ और भी है जो बड़ा कीमती है। हम तो इसका एक ही तरह से उपयोग करते हैं साधारण भाषा में। जब कोई आदमी अपने को मार लेता है तो हम कहते हैं : आत्महंता । हंत का अर्थ होता है, जिसने अपने को मिटा लिया; जिसने अपने को समाप्त कर दिया; जिसके भीतर 'मैं न रहा; जिसके भीतर अहंकार न रहा; जिसने अपने को बिलकुल समाप्त कर दिया; जिसने अपनी कोई रूप-रेखा न बचायी, नाम-पता न छोड़ा; जो शून्यवत हुआ; जो महाशून्य हुआ; निर्वाण को उपलब्ध हुआ, जिसने वस्तुत: आत्मघात कर लिया!
तुम जिन्हें आत्मघात कहते हो वे आत्मघात नहीं हैं, वे तो केवल शरीर - घात हैं। एक आदमी गोली मार कर मर जाता है, इसको आत्मघात नहीं कहना चाहिए। क्योंकि आत्मा तो नहीं मरती । अहंकार तो नहीं मरता। सच तो यह है कि अहंकार के कारण ही उसने शरीर को मिटा डाला है। अहंकार पर चोट पड़ रही थी; दाब लग गया था, मुश्किल दिखता था बचना; दिवाला निकल रहा था, कि पत्नी भाग गयी थी; कि पराजित हो गया था; चुनाव में हार गया था - आत्महत्या कर ली। 'आत्महत्या' कहनी नहीं चाहिए–'शरीर-हत्या', 'देह-हत्या' । मन, अहंकार सब मौजूद है। फिर जन्म ले लेगा। देर नहीं लगेगी। फिर किसी देह में उतर जायेगा ।
लेकिन ज्ञानी वस्तुत: आत्महंता है। वह अपने को मिटा ही डालता है पूरा का पूरा । और उसके मिट जाने में ही परमात्मा का होना है। जब तुम खो जाते हो, तभी प्रभु होता है। जहां तुम नहीं हो, वहीं भगवान है।
तुम्हारा मिलन भगवान से कभी न हो सकेगा। तुम जब तक खोजते रहोगे तब तक भटकते रहोगे। क्योंकि तुम जब तक खोजते रहोगे तुम तुम ही बने रहोगे।
कल एक युवक इंगलैंड से आया और मुझसे कहने लगा कि मैं आपके पास आया हूं । मेरी जी में बड़ी आस्था है; बड़ा विश्वास है मुझे जीसस में उसने कहा- क्या आप मेरे विश्वास को दृढ़ बना सकेंगे? क्या आप मेरे विश्वास को और मजबूत बना सकेंगे? तो मैं संन्यस्त होने को तैयार हूं। मैंने