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सुन-सुन कर शास्त्रों में पढ़ पढ़ कर कि परमात्मा प्रकाश - रूप है, प्रकाश रूप...। और कई तो ऐसे पागल हैं जिनका हिसाब नहीं!
चार-छः दिन पहले एक व्यक्ति ने संन्यास लिया। उन्होंने कहा कि मैंने बालयोगेश्वर से दीक्षा ली है, तो उन्होंने मुझे समझाया था कि आंख को अंगूठों से दबाने से प्रकाश का अनुभव होता है, बड़ा अनुभव होता है। मैं दबाता हूं आंख, बड़ा अनुभव होता है। तो वह मैं जारी रखूं कि बंद करूं? अब क्या पागल हो? आंख को दबाओगे अंगूठे से तो तिलमिलाहट पैदा होने से रोशनी मालूम होती है; वह तो किसी को भी मालूम होती है; उससे अध्यात्म का कोई संबंध है? कोई भी आंख को जोर से दबाएगा तो तिलमिलाहट पैदा होती है, तिलमिलाहट से रोशनी मालूम होती है। वह रोशनी तो सिर्फ आंख के दबाने के कारण मालूम हो रही है। इसको तुम आध्यात्मिक प्रकाश समझ रहे हो? और वे दो साल से यही काम कर रहे हैं। उसमें उनकी आंखें भी खराब हो गई हैं। क्योंकि जब बहुत आंखों को दबाओगे...। और फिर धीरे- धीरे रस आने लगा, तो फिर और ज्यादा दबाने लगे। क्योंकि जितना दबाओ उतना प्रकाश दिखाई पड़ता है, गजब हो रहा है! इसको बालयोगेश्वर ज्ञान कहते हैं। आंख में दबाने से जो रोशनी पैदा होती है - यह ज्ञान है।
अब यह मामला ऐसा है कि किसी की भी आंख दबा दो, उसको रोशनी दिखाई पड़ती है; वह भी चकित हो जाता है कि यह तो बात बिलकुल ठीक हो रही है! हमें पता ही नहीं था, बड़ा सीधा-सुगम उपाय मिल गया!
या फिर ऐसे लोग हैं जो कहते हैं, रोशनी की भीतर धारणा करो। आंख बंद कर लो, दोनों आंखों के मध्य में देखो कि एक दीये की ज्योति जल रही है या एक प्रकाश का बिंदु, उस पर ध्यान रखो । अगर तुम ऐसी कल्पना करोगे तो धीरे- धीरे कल्पना प्रगाढ़ हो जाएगी। तुम्हें रोशनी दिखाई पड़ने लगेगी, मगर यह झूठी रोशनी है।
धर्म ज्योति ने पूछा है यह प्रश्न । ठीक हो रहा है! अंधेरी रात से गुजर कर ही जो सुबह होगी, जिस सुबह को तुम नहीं ला सकते, जो अपने-आप आती है सुबह, वह अंधेरी रात से गुजर कर आती है। तुम अंधेरी रात में शांति से गुजरो, जाओ। प्रकाश करीब आने से पहले रात बहुत अंधेरी हो जाएगी। मगर शुभ हो रहा है, क्योंकि अंधेरे के साथ एक ठंडा और प्रीतिकर भाव है। तो बिलकुल शुभ हो रहा है। भय न हो अंधेरे से, प्रेम हो अंधेरे से, तो सुबह ज्यादा दूर नहीं। अगर भय हो तो तुम भागने लगोगे । भागने लगे तो सुबह से दूर हो जाओगे । भागोगे तो अंधेरे से, दूर हो जाओगे सुबह से। और ठंडा, शीतल.. . बिलकुल शुभ हो रहा है। ठंडा और शीतल ही है अंधेरे का अनुभव। वह तो भय के कारण हम अनुभव नहीं कर पाते। बचपन से ही अंधेरे के संबंध में हमारी गलत धारणा हो जाती है। बच्चा डरता है अंधेरे से, क्योंकि अकेला रह जाता है। अंधेरे में घबराता है कि कोई आ न जाए, कुछ मार न दे, कोई चोट न कर दे, कुछ गिर न पड़े। छोटा बच्चा ! वह भय बैठ जाता है। और फिर मनुष्य जाति के इतिहास में भी आज से कोई दस हजार, बीस हजार साल पहले जब आदमी जंगलों में था, गुफाओं में था, आग का आविष्कार न हुआ था तो रात बड़ी घबराने वाली थी। क्योंकि