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यह दुनिया धर्म के बड़े विपरीत है। यहां तीन सौ धर्म हैं जमीन पर, मगर यह दुनिया धर्म के बड़े विपरीत है। ये तीन सौ धर्म सभी धर्म के हत्यारे हैं। इन्होंने सब धर्म को मिटा डाला है और मिटाने की पूरी चेष्टा है। धर्म मिट जाता है, अगर तुम आज्ञाकारी हो जाओ। मैं तुमसे यह नहीं कहता कि अनाज्ञाकारी हो जाओ, खयाल रखना। मेरी बात का गलत अर्थ मत समझ लेना। मैं तुमसे कहता हूं. विवेकपूर्ण..। फिर जो ठीक लगे आज्ञा में, बराबर करो; और जो ठीक न लगे, फिर चाहे कोई भी परिणाम भुगतना पड़े, कभी मत करो। तब तुम्हारे जीवन में फिर से आश्चर्य का उदभव होगा। फिर से तुम्हारे प्राणों पर जम गई राख झड़ेगी और अंगारा निखरेगा और दमकेगा। उस दमक में ही कोई परमात्मा तक पहुंचता है।
परमात्मा तक पहुंचने का मार्ग सैनिक होना नहीं है- परमात्मा तक पहुंचने का मार्ग संन्यासी होना है। और संन्यासी का अर्थ है : जिसने निर्णय किया कि सब जोखिम उठा लेगा, लेकिन अपने विवेक को न बेचेगा; सब जोखिम उठा लेगा, अगर जीवन भी जाता हो तो गंवाने को तैयार रहेगा, लेकिन अपनी अंतस - स्वतंत्रता को न बेचेगा ।
स्वतंत्रता का अर्थ स्वच्छंदता नहीं है। स्वतंत्रता का अर्थ विवेक है। स्वतंत्रता का अर्थ परम दायित्व है कि मैं अपना उत्तरदायित्व समझ कर स्वयं जीऊंगा, अपने ही प्रकाश में जीऊं - गा; उधार, परंपरागत, लकीर का फकीर हो कर नहीं। क्योंकि दुनिया की स्थितियां बदलती जाती हैं और लकीरें नहीं बदलतीं। दुनिया रोज बदलती जाती है, नक्शे पुराने बने रहते हैं। दुनिया रोज बदलती जाती है, आदेश पुराने हैं। अब तुम वेद से आदेश लोगे, भटकोगे नहीं तो क्या होगा ? तुम कुरान से आदेश लोगे, गीता से आदेश लोगे, भटकोगे नहीं तो क्या होगा? पढ़ो गीता, समझो गीता, लेकिन आदेश सदा स्वयं की आत्मा से लेना । उपदेश ले लेना जहां से भी लेना हो, आदेश कहीं से भी मत लेना । उपदेश और आदेश का यही फर्क है।
उपदेश का अर्थ है : जहां भी शुभ बात सुनाई पड़े, सुन लेना, गुन लेना, समझ लेना। लेकिन आदेश कहीं से मत लेना। आदेश के लिए तो तुम्हारे भीतर बैठा परमात्मा है, उसी से लेना ।
आश्चर्य की क्षमता मर गई है, क्योंकि तुमने अहंकार को चाहा, अहंकार की आकांक्षा में मर गई है। अगर तुम चाहते हो आश्चर्य फिर से जागे, तो अहंकार की चट्टानों को हटाओ - बहेगा झरना आश्चर्य का। और वह आश्चर्य तुम्हें ताजा कर जाएगा, कुंआरा कर जाएगा, नया कर जाएगा। फिर से तुम देखोगे दुनिया को जैसा कि देखना चाहिए। ये हरे वृक्ष कुछ और ही ढंग से हरे हो जाएंगे। के फूल किसी और ढंग से गुलाबी हो जाएंगे।
ये
गुलाब
यह जगत बड़ा सुंदर है, लेकिन तुम्हारी आंखों का आश्चर्य खो गया है; तुम्हारी आंखों पर पत्थर जम गए हैं। यह जगत अपूर्व है, क्योंकि प्रभु मौजूद है यहां, यह प्रभु से व्याप्त है! यहां पत्थर - पत्थर में परमात्मा छिपा है; इसलिए कोई पत्थर पत्थर नहीं है, यहां सिर्फ कोहिनूर ही कोहिनूर हैं। हर पत्थर से उसी का नूर प्रगट हो रहा है, उसी की रोशनी है। मगर तुम्हारे पास आश्चर्य की आंख चाहिए। इसलिए तो जीसस ने कहा है : धन्य हैं वे जो छोटे बच्चों की भांति हैं, क्योंकि वे ही मेरे प्रभु के राज्य में