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विस्मय है द्वार प्रभु का-प्रवचन--तीसरा
दिनांक: 28, सितंबर, 1976; श्री रजनीश आश्रम, पूना।
प्रश्न सार:
पहला प्रश्न:
मनोवैज्ञानिक विक्टर ई. फ्रैंकल ने 'अहा-अनुभव' (Aha-Experience) एवं 'शिखर-अनुभव (peak-Experience) की चर्चा करके मनोविज्ञान को नया आयाम दिया है। क्या आप कृपा करके इसे अष्टावक्र एवं जनक के आश्चर्य-बोध के संदर्भ में हमें समझाएंगे?
पहली बात. जिसे फ्रैंकल ने 'अहा-अनुभव' कहा है, वह ' अहा 'तो है' अनुभव बिलकुल नहीं। अनुभव का तो अर्थ होता है 'अहा' मर गई। अहा का अर्थ ही होता है कि तुम उसका अनुभव नहीं बना पा रहे; कुछ ऐसा घटा है, जो तुम्हारे अतीत-ज्ञान से समझा नहीं जा सकता, इसीलिए तो अहा का भाव पैदा होता है, कुछ ऐसा घटा है जो तुम्हारी अतीत– श्रृंखला से जुड़ता नहीं, श्रृंखला टूट गई अनहोना घटा है, अपरिचित घटा है, असंभव घटा है; जिसे न तुमने कभी सोचा था, न विचारा था, न सपना देखा था-ऐसा घटा है।
परमात्मा जब तुम्हारे सामने खड़ा होगा, तो न तो वह कृष्ण की तरह होगा बांसुरी बजाता हुआ और न जीसस की तरह होगा सूली पर लटका हुआ और न राम की तरह होगा धनुषबाण हाथ में लिए हुए। अगर राम की तरह धनुष-बाण हाथ में लिए खड़ा हो, तो तुम्हारे अनुभव से मेल खा जाएगा। तुम कहोगे. ठीक है, प्रभु द्वार आ गए। अहा पैदा नहीं होगा; अनुभव बन जाएगा तुम्हारी धारणा में बैठ जाएगा। थोड़े-बहुत चौंकोगे, लेकिन चौंक इतनी गहरी न होगी कि तुम्हारे अतीत से तुम्हारे भविष्य को अलग तोड़ जाए।
अहा का अर्थ होता है ऐसी चौंक कि जैसे बिजली कौंध गई और एक क्षण में जो अतीत था वह मिट गया, उससे तुम्हारा कोई संबंध न रहा। कुछ ऐसा घटा, जिसकी तुम्हें सपने में भी भनक न थी। असंभव घटा! अज्ञेय दवार पर खड़ा हो गया! न जिसके लिए कोई धारणा थी, न विचार था, न सिद्धात था; जिसे समझने में तुम असमर्थ हो गए बिलकुल, जिस पर तुम्हारी समझ का ढांचा न बैठ सका; जो तुम्हारी समझ के सारे ढांचे तोड़ गया-उसी अवस्था में ही अहा का भाव पैदा होता है।