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था; फिर भी कुछ अड़चन थी कि समझ में नहीं आता था, क्यों अटका है?
तो उन्होंने कहा. हम तो समझ नहीं पाए कि उपदेश का क्या अर्थ है, क्या संदेश का अर्थ है? उन्होंने छोड़ा जरूर है, वचन हमें याद है, हम वह कह देते हैं। हमें अर्थ मालूम नहीं, अर्थ तुम हमसे पूछना भी मत, तुम जानो और वे जानें। इतना ही उन्होंने कहा कि हे गौतम, तू पूरी नदी तो तैर गया, अब किनारे पर क्यों रुक गया है?
और कहते हैं, यह सुनते ही गौतम ज्ञान को उपलब्ध हो गया ! यह सुनते ही मोक्ष घट गया!
हिमगिरि लांघ चला आया मैं लघु कंकर अवरोध बन गया । जलनिधि तैर चला आया मैं उथला तट प्रतिरोध बन गया।
आदमी पूरा सागर तैर जाता है, फिर सोचता है, अब तो किनारा आ गया - अब किनारे को पकड़ कर रुक जाता है। किनारे को भी छोड़ना पड़े। सब छोड़ना पड़े। छोड़ना भी छोड़ना पड़े। तभी तुम बचोगे अपने शुद्धतम रूप में - निरंजन ! तभी तुम्हारा मोक्ष प्रगट होता है।
चौथा प्रश्न :
आपने जैसे मुझे मेरे पिछले स्वप्न से जगाया, मैं उसका बिलकुल गलत अर्थ किए बैठा था वैसे ही इस स्वप्न के बारे में भी कुछ कहने की कृपा करें। पहले मैं अक्सर स्वप्न देखता था कि भीड़ में, सभा में, समाज में अचानक नग्न हो गया हूं। और उससे मैं बहुत चौंक उठता था। लेकिन संन्यास लेने के पश्चात वैसा स्वप्न आना बंद हो गया वर्षभर से मैं अनेक बार स्वप्न में अपने को गैर- गैरिक वस्त्रों में देखता हूं और अपने को वैसा देख कर भी मैं बहुत चौंक उठता हूं। उल्लेखनीय है कि अब तो मैं गैरिक वस्त्र स्वेच्छा, आनंद और कृतज्ञता के भाव से पहनता हूं। मैंने जो कुछ पाया है उसे C में यह रंग बहुत सहयोगी साबित हुआ है। फिर यह स्वप्न क्या सूचित करता है?
पूछा है 'अजित सरस्वती' ने।
इस स्वप्न को समझने के लिए आधुनिक मनोविज्ञान को कार्ल गुस्ताव का के द्वारा दी गई एक धारणा समझनी होगी। कार्ल गुस्ताव का ने उस धारणा को 'दि शैडो, छाया - व्यक्तित्व कहा है। वह बड़ी महत्वपूर्ण धारणा है। जैसे तुम धूप में चलते हो तो तुम्हारी छाया बनती है-ठीक ऐसे ही तुम जो भी करते हो, उसकी भी तुम्हारे भीतर छाया बनती है। वह छाया विपरीत होती है। वह छाया सदा