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झूठा था। और फिर जब रात सोते हो दूसरे दिन, तो फिर उस झूठ में पड़ जाते हो। फिर रात वही सपना फिर ठीक मालूम होने लगता है। सपने में तुम्हें कभी संदेह उठता ही नहीं। सपने में मैंने नास्तिक देखा ही नहीं, सपने में सभी आस्तिक हैं। सपने में संदेह उठता ही नहीं, भ्रम उठता ही नहीं, शक उठता ही नहीं। सपने में तो बिलकुल श्रद्धा रहती है। बड़े आश्चर्यजनक लोग हैं!
अगर तुम सपने में देख रहे हो कि अचानक एक घोड़ा चला आ रहा है, पास आ कर अचानक तुम्हारी पत्नी बन गया है या पति बन गया है, तो भी तुम्हारा मन यह नहीं कहता कि यह कैसे हो सकता है! तुम स्वीकार करते हो। जरा भी, रंचमात्र भी संदेह नहीं उठता। कुछ भी घटना घट सक है। तुम सपने में आकाश में उड़ते हो, तुम शक भी नहीं करते कि मैं आकाश में कैसे उड़ सकता हूं यह कैसे संभव है! तुम विराट हो जाते हो सपने में, सारा आकाश भर देते हो, कि बड़े छोटे हो जाते हो, कि चींटी से भी छोटे हो जाते हो कि दिखाई भी नहीं पड़ते, तो भी तुम्हें शक नहीं होता। सुबह जाग कर तुम हंसते हो कि क्या-क्या पागलपन देखा ! सपने में सपना सच हो जाता है।
'मित्र, खेत, धन, मकान, स्त्री, भाई आदि संपदा को तू स्वप्न और इंद्रजाल के समान देख, जो तीन या पांच दिन हो टिकते हैं। '
भारत में सत्य की एक परिभाषा है और वह परिभाषा है : जो तीनों काल में टिके; त्रिकालअबाधित; कभी भी जिसका खंडन न हो; जो पहले भी था, अभी भी है और फिर भी होगा, जो शाश्वत है - वही सत्य है। जो कल नहीं था, आज है, और कल फिर नहीं हो जाएगा उसे भारत असत्य कहता
है।
भारत की इस परिभाषा को ठीक खयाल में लेना। यहां सत्य की परिभाषा ही यही है कि जो अबाधित रूप से रहे, जैसा था वैसा ही रहे। क्यों? जो कल नहीं था, आज है, और कल फिर नहीं हो जाएगा इसका तो अर्थ हुआ कि दो 'नहीं' के बीच में होना घट सकता है। एक दिन था तुम नहीं थे, जन्म नहीं हुआ था, एक दिन आएगा कि तुम मर जाओगे, मौत हो जाएगी। दो 'नहीं' और उन दोनों के बीच में जिसको तुम जीवन कहते हो यह है । यह तो स्वप्नवत है- चाहे सत्तर साल देखो, चाहे सात सौ साल देखो, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। लंबाई से कुछ भेद नहीं पड़ता। जो सदा है. । त्रिकालाबाध्यत्वे सत्यत्वम्।
'जो तीनों काल में अबाधित रहे, वही सत्य है । '
भारतीय मनोविज्ञान मनुष्य की चेतनो की चार अवस्थाएं कहता है। तीन तो अवस्थाएं हैं, चौथा स्वभाव है। जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति - तीन तो अवस्थाएं हैं; और साक्षी, तुरीय, चतुर्थ स्वभाव है। जागते में
तुम एक दुनिया देखते हो। जब तुम सो जाते हो और सपने में पड़ते हो तो जागने की दुनिया झूठ हो जाती है। तुम ठीक अपनी पत्नी के पास सो रहे हो बिस्तर पर, लेकिन पत्नी झूठ हो गई जब तुम सो गए। तुम्हें सोने में पत्नी की कभी याद नहीं आती। तुम यह सोचते ही नहीं इस भाषा में कि वह मेरी पत्नी है। जब तुम सो गए तो बच्चे, तुम्हारा मकान, तुम गरीब हो कि अमीर, प्रतिष्ठित हो कि अप्रतिष्ठित, साधु हो कि संत, कि असाधु कि असंत, सब खो गया। जागना एक सपना था।