________________
हो कर भरोसा नहीं आता कि यह सेतु दूसरी पार जाता होगा, क्योंकि दूसरा पार दिखाई ही नहीं पड़ता । यह सेतु कहीं रास्ते में ही त्रिशंकु की तरह अटका तो नहीं देगा? क्योंकि दूसरा किनारा तो दिखाई ही नहीं पड़ता है।
और जब कोई उस सेतु पर चढ़ कर दूसरे किनारे पर पहुंच जाता है, तब भी यह भरोसा नहीं आता। क्योंकि अब पहला किनारा दिखाई नहीं पड़ता। अब शक- सुबहा होने लगता है कि पहला किनारा था भी! घटना इतनी बड़ी है - इस तरफ से भी समझ में नहीं आती, उस तरफ से भी समझ में नहीं आती। घटना इतनी बड़ी है ! समझ से बड़ी है, इसलिए समझ में नहीं आती । पात्र छोटा है, जो प्रसाद बरसता है, वह बहुत बड़ा है। पात्र की सीमा है, प्रसाद है असीम, अनिर्वचनीय, अव्याख्य ।
इसलिए सुपात्र की अनिवार्य शर्त है इस बात का बोध कि मैं तो अपात्र हूं। जो दावेदार बना वह परमात्मा से चूका। जिसने कहा मुझे मिलना चाहिए क्योंकि देखो कितनी मैंने की तपश्चर्या, कितने उपवास, कितने व्रत, कितने नियम, कितने अनुशासन, कितना ध्यान, कितनी नमाज, कितनी प्रार्थना; मुझे मिलना चाहिए; यह मेरा हिसाब है; मेरे साथ अन्याय हो रहा है; यह देखो तो मैंने क्या-क्या किया - वह चूक जाएगा। उसके इस दावे में ही चूक जाएगा, क्योंकि दावा क्षुद्र का है।
तुमने कितने बार सिर झुकाया, इससे क्या लेना-देना? परमात्मा के मिलने से क्या संगति है कि तुमने नमाज में बहुत सिर झुकाया कवायद हो गई होगी तो उसका तुम्हें लाभ भी मिल गया होगा! कि तुमने योगासन किए, तो ठीक, तुम थोड़े ज्यादा दिन जिंदा रह लिए होओगे ! कि तुमने प्रार्थ की तो प्रार्थना का मजा ले लिया होगा। प्रार्थना का संगीत है, उसमें थोड़ी देर तुम प्रफुल्लित हो लिए होओगे। और क्या चाहिए 1: तुमने जो किया, उससे कुछ दावा नहीं बनता। इसलिए जो दावेदार हैं, वे चूक जाते हैं। यहां तो गैर- दावेदार पाते हैं।
तो तुम पथ के दावेदार मत बनना । तुम यह तो कहना ही मत कभी भूल कर कि अब मुझे मिलना चाहिए; जो मैं कर सकता था, कर चुका । वही बाधा हो जाएगी - वह भाव ! तुम तो यही जानना कि मेरे किए क्या होगा ! करता हूं क्योंकि बिना किए नहीं रहा जाता। कुछ करता हूं लेकिन मेरे किए होना क्या है! मेरे हाथ छोटे हैं; जो पाना है, बहुत विराट है मेरी मुट्ठी में कैसे समाएगा?
मैंने सुना है, एक कवि हिमालय की यात्रा को गया । उसने पहाड़ों से उतरते ग्लेशियर, उनकी सरकती हुई मरमर ध्वनि सुनी। वह अपनी प्रेयसी के लिए एक बोतल में ग्लेशियर का जल भर लाया। घर आ कर जब बोतल से जल उंडेला तो घुप्प - घुप्प इसके सिवा कुछ आवाज न हुई। उसने कहा यह मामला क्या है? क्योंकि जब मैंने ग्लेशियर में देखा था उतरती पहाड़ से जलधार, बहती जलधार में बर्फ की चट्टानें, तो ऐसा मधुर रव था - वह कहां गया?
तुम कोशिश करके देख सकते हो। गए समुद्र के तट पर देखीं समुद्र की उड़ा लहरें, टकराती चट्टानों से, करतीं शोरगुल, देखा उनका नृत्य, आह्लादित हुए भर लाए एक बोतल में थोड़ा-सा सागर । घर आ कर उंडेला-घुप्प - घुप्प! वे सारी तूफानी आवाजें, सागर का वह विराट रूप, वह तांडव नृत्य - कुछ भी नहीं, घुप्प - घुप्प - सब खो जाता है।