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________________ नहीं, सिर्फ शून्य के उदघोषक - और परमात्मा तुम्हें भर देगा। तुम मिटो! यही तो अष्टावक्र ने कहा कि जब तक 'मैं हूं, तब तक सत्य नहीं। जहां 'मैं' न रहा, वहीं सत्य उतर आता है। मेरी पूरी चेष्टा तुम्हें यह अदभुत कला सिखाने की है कि तुम कैसे मिटो कि तुम कैसे मरो । इसलिए तो मैं कहता हूं. मैं मृत्यु सिखाता हूं। क्योंकि वही द्वार है परम जीवन को पाने का। इससे ही बदलाहट की किरण तुम्हारे भीतर आई है। 'जिस प्रेम और आनंद की तलाश मुझे जन्मों से थी, वह प्रेम और आनंद मुझे अयाचित गुरु प्रसाद के रूप में मिल गया।' अयाचित ही मिलता है । याचना से कुछ मिले दो कौड़ी का है। मांग कर कुछ मिले, मूल्य न रहा। बिन मांगे मिले, तो ही मूल्यवान है। ध्यान रखना, इस जगत में भिखारी की तरह तुम अगर मांगते रहे, मांगते रहे... वही तो वासना है। वासना का अर्थ क्या है? मांग। तुम कहते हो : यह मिले, यह मिले, यह मिले! तुम जितना मांगते हो, उतना बड़ा भिखमंगापन होता जाता है, और उतना ही जीवन तुम्हें लगता है विषाद से भरा हुआ। तुम जो मांगते हो मिलता नहीं मालूम होता । स्वामी राम ने कहा है कि एक रास्ते से मैं गुजरता था। एक बच्चा बहुत परेशान था। सुबह थी, धूप निकली थी, सर्दी के दिन थे और बच्चा अपान में खेल रहा था। वह अपनी छाया को पकड़न चाहता था। तो उचक - उचक कर छाया को पकड़ रहा था। बार-बार थक जाता था, दुखी हो जाता था, उसकी आंख में आंसू आ गए, फिर छलांग लगाता । लेकिन जब तुम छलांग लगाओगे, तुम्हारी छाया भी छलांग लगा जाती है। वह छाया को पकड़ने की कोशिश करता है, छाया नहीं पकड़ पाता है। राम खड़े देख रहे हैं, खिलखिला कर हंसने लगे। उस बच्चे ने राम की तरफ देखा । वे बड़े प्यारे संन्यासी थे, अदभुत संन्यासी थे! वे उस बच्चे के पास गए। उन्होंने कहा, जो मैं करता रहा जन्म-जन्म, वही तू कर रहा है। फिर मैंने तो तरकीब पा ली, मैं तुझे तरकीब बता दूं? वह छोटा-सा बच्चा रोता हुआ बोला : बताएं, कैसे पकडूं? राम ने उसका हाथ उठा कर उसके माथे पर रख दिया। देखा उधर छाया पर भी उसका हाथ माथे पर पड़ गया। वह बच्चा हंसने लगा। वह प्रसन्न हो गया। उस बच्चे की मां ने राम से कहा, आपने हद कर दी ! आपके बच्चे हैं? राम ने कहा, मेरे बच्चे तो नहीं। लेकिन जन्मों-जन्मों का यही अनुभव मेरा भी है। जब तक दौड़ो, पकड़ो-हाथ कुछ नहीं आता। जब अपने पर हाथ रख कर बैठ जाओ, हाथ फैलाओ ही मत, मांगो ही मत, दौड़ो ही मत छीना-झपटी छोड़ो - सब मिल जाता है। राम ने कहा, मैंने एक घर क्या छोड़ा, सारा विश्व मेरा हो गया। एक कुटिया, एक आंगन क्या छोड़ा, सारा आकाश मेरा आंगन हो गया। अब चांद-तारे मेरे आयन में चलते हैं, कुज मेरे आयन में निकलता है।
SR No.032110
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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