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________________ चारों तरफ से प्रशंसा के फूल बरसाने लगता। व्रती को इतनी प्रशंसा मिलती है कि अहंकार मजबूत होता है। अब उसके सामने अड़चन आएगी। अगर वह चोरी करने जाए तो इतना अहंकार खोने की हिम्मत होनी चाहिए। तो जितना व्रती को सम्मान दिया जाता है, उतना ही उसका अहंकार परिपुष्ट हो जाता है। और अब अहंकार को लड़ाता है वह अपनी पुरानी आदत के खिलाफ। इतना ही कुल अर्थ है व्रती का। व्रती में कुछ और मामला नहीं है। अब तुम सोचो, चोरी से छूटे और अहंकार में फंसे यह कुछ मुक्ति न हुई इससे चोरी बेहतर थी। इससे चोरी बुरी नहीं थी। यह तो कुएं से बचे और खाई में गिरे! और इससे भी चोरी नष्ट नहीं हो जाएगी, चोरी भीतर-भीतर सुलगेगी; अहंकार ऊपर-ऊपर पताका फहराएगा, चोरी भीतर-भीतर सुलगेगी। और भीतर सतत एक संघर्ष होगा, चौबीस घंटे एक लड़ाई चलेगी। अब समझ लो कि लाख रुपये इस आदमी को रास्ते के किनारे पड़े मिल जाएं, अब इसको बड़ी मुश्किल हो जाएगी कि क्या करूं. अब यह लाख बचाऊं कि अहंकार बचाऊं? एक हाथ बढ़ाका कि उठा लूं एक हाथ रोकेगा कि अरे, यह क्या कर रहे हो? इसी को समाज अंतःकरण कहता है, कॉनशिएन्स कहता है। कॉनशिएन्स बड़ी समाज की गहरी तरकीब है। वह तुम्हें एक तरह का अहंकार दे देता है, जिसको तुम अंतःकरण कहते हो। तुमसे बचपन से कहा गया है कि तुम बड़े कुलीन हो बड़े घर में पैदा हुए हिंदू मुसलमान, ईसाई! खयाल रखना-अपनी इज्जत का, अपने परिवार का, अपने वंश का, अपने कुल का, अपने धर्म का, अपने राष्ट्र का! स्मरण रखना, तुम कौन हो! तुम कोई साधारण पुरुष नहीं हो। तुम हिंदू हो, कि मुसलमान हो, कि ईसाई हो! बाकी सब साधारण हैं। मुल्ला जब मरने लगा तो लोगों ने उसकी प्रार्थना सुनी वह कह रहा था परमात्मा से कि हे प्रभु, मैंने चोरी की है बहुत बार, यह सच है; और मैं कई बार अचौर्य के व्रत से पतित हुआ हूं। मैंने दूसरों की स्त्रियों की तरफ बुरी नजर से देखा है, यह भी सच है; मैं व्यभिचारी हूं। और मैंने कोई बड़ी बड़ी चोरियां ही की हों, यह भी नहीं है, मैंने मुर्गियां तक पड़ोसियों की चुरा ली हैं। और मैं सब तरफ से बेईमान हूं झूठा हूं। झूठ मेरी आदत में शुमार हो गई है सच मुझसे बोला नहीं गया। मैं दुष्ट भी हूं। छोटी-मोटी बात पर झगड़ा मुझे बिलकुल आसान है, मारपीट आसान है। इतना ही नहीं, मैंने एक आदमी की हत्या भी कर दी है। और हत्या के विचार तो मेरे मन में सदा उठते रहे हैं। यह सब है; लेकिन एक बात तुमसे कहना चाहता हूं कि मैंने सब कुछ किया हो, लेकिन अपना धर्म कभी नहीं खोया! अब यह बड़े मजे की बात है! अब यह धर्म क्या है? मैंने अपना 'दीन' कभी नहीं खोया, रहा सदा मुसलमान ही! उस संबंध में मैंने कभी ऐसा नहीं कि ईसाई हो गया, कि हिंदू हो गया-रहा सदा मुसलमान ही! धर्म मैंने कभी नहीं खोया! इतनी बात मैं जरूर तुझसे कहूंगा यह तू याद रखना! लाख बुरे काम कर लिए हों, लेकिन धर्म कभी नहीं खोया! अब लोग धर्म बचा रहे हैं। धर्म भी अहंकार का हिस्सा हो जाता है। कुल, प्रतिष्ठा, मान मर्यादा.। और तुम थोड़ा सोचो, तुमने कसम ले ली कि चोरी नहीं करेंगे और चोर का तुम्हारा मन है,
SR No.032110
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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