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अपराध से तो तुम बच सकते हो और अक्सर बड़े अपराधी बच जाते हैं, छोटे अपराधी पकड़े जाते हैं। जिसको बचाने वाला कोई नहीं, वे फंस जाते हैं। जिनको बचाने के लिए धन है, सुविधा है, संपत्ति है, वे बच जाते हैं। बड़े अपराधी नहीं पकड़े जाते। बड़े अपराधी तो सेनापति हो जाते हैं, राजनेता हो जाते हैं। बड़े अपराधी तो इतिहास-पुरुष हो जाते हैं। छोटे अपराधी कारागृहों में सड़ते हैं।
__ लेकिन जहां विचार का संबंध है, वहां कोई तुम्हें बचा न सकेगा। यहां तुमने विचार किया कि तुम पतित हो ही गए। ऐसा अगर होता कि अभी तुम विचार करते और कई जन्मों के बाद पतित होते, तो बीच में हम कोई उपाय खोज लेते, रिश्वत खिला देते। ऐसा कोई उपाय नहीं है। विचार किया कि तुम पतित हुए।
तुमने देखा, जब तुम भीतर विचार करते हो क्रोध का, तो तुम्हारे लिए तो क्रोध घट ही गया! तुम तो उसी में उबल जाते हो। तुम तो जल जाते हो, तुम तो दग्ध हो जाते हो। फिर तुमने क्रोध किया है या नहीं किया, यह दूसरी बात है। भीतर-भीतर तो छाले पड़ गए, भीतर-भीतर तो घाव हो गए। वह तो क्रोध के भाव में ही हो गए। क्रोध में ही क्रोध का परिणाम है।
इसलिए परमात्मा को धोखा देने का उपाय नहीं है। उसने परिणाम को कारण से दूर नहीं रखा है। आग में हाथ डालो तो ऐसा नहीं कि इस जन्म में हाथ डालोगे और अगले जन्म में जलोगे; हाथ डाला कि जल गये।
यहां भी आदमी ने तरकीबें निकाली हैं। लोग कहते हैं : अभी करोगे, अगले जन्म में भरोगे। क्या मजे की बात कह रहे हैं! वे कह रहे हैं : अभी पाप करोगे, अगले जन्म में मिलेगा फल; इतनी तो अभी सुविधा है! कौन देख आया अगले जन्म की! और तब तक बीच में कुछ पुण्य कर लेंगे, बचने का कुछ उपाय कर लेंगे। पूजा, प्रार्थना, अर्चना कर लेंगे; पंडित, पुरोहित को नौकरी पर लगा देंगे; मंदिर बना देंगे, दान करेंगे, धर्मशाला बना देंगे-कुछ कर लेंगे! अभी तो होता नहीं!
__पंडितों ने तुम्हें समझाया है कि धर्म उधार है। यह हो नहीं सकता, क्योंकि धर्म तो उतना ही वैज्ञानिक है जितना विज्ञान। अगर विज्ञान नगद है तो धर्म उधार नहीं हो सकता। आग में हाथ डालते हो तो अभी जलते हो। क्रोध करोगे तो भी अभी जलोगे। बुरा सोचोगे तो बुरा हो गया।
विचार से मनुष्य पाप करता है और जब पाप को कृत्य तक ले आता है तो अपराध हो जाते हैं। अपराधों से तो बचने का उपाय है; लेकिन अगर तुमने सोच लिया बुरा विचार तो बस घटना घट गई; अब बचने की कोई सुविधा न रही, जो होना था हो गया।
अष्टावक्र कहते हैं : 'किया और अनकिया कर्म और वंद्व, सुख और दुख का संघर्षण, किसके कब शांत हुए हैं।
बड़ी अनूठी बात कह रहे हैं। वे कह रहे हैं तुम इनको शांत करने में मत लग जाना अन्यथा और अशांत हो जाओगे। ये कब किसके शांत हुए हैं।
तुमने कभी कोई ऐसा आदमी देखा, जिसके सुख-दुख शांत हो गए हों? महावीर की भी मृत्यु होती तो पेचिस की बीमारी से होती। बुद्ध की मृत्यु होती है तो विषाक्त भोजन शरीर में फैल जाता