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है! इस भय के कारण आदमी मर्यादा में जीता है।
लेकिन जिस व्यक्ति को पता चला कि मैं इस विराट के साथ एक हूं-ये वृक्ष भी मेरे ही फैलाव हैं, यह मैं ही इन वृक्षों में भी हरा हुआ हूं तो वृक्ष की डाल को काटते वक्त भी तुम्हारी आंखें गीली हो आएंगी, तुम संकोच से भर जाओगे, तुम अपने को ही काट रहे हो, तुम सम्हल- सम्हल कर चलने लगोगे, जैसे महावीर चलने लगे सम्हल - सम्हल कर। कहते • रात करवट न बदलते थे कि कहीं करवट बदलने में कोई कीड़ा-मकोड़ा पीछे आ गया हो, दब न जाए। तो एक ही करवट सोते थे। अब किसी
भी ऐसा उनसे कहा नहीं था, किसी शास्त्र में लिखा नहीं कि एक ही करवट सोना । किसी नीति-शास्त्र में लिखा नहीं कि करवट बदलने में पाप है। महावीर के पहले भी जो तेईस तीर्थंकर हो गए थे जैनों के, उनमें से भी किसी ने कहा नहीं कि रात करवट मत बदलना; किसी ने सोचा ही नहीं होगा कि करवट बदलने में कोई पाप हो सकता है। तुम्हारी करवट है, मजे से बदलो, क्या अड़चन
है? लेकिन महावीर का अंतरबोध कि करवट बदलने में भी उन्हें लगा कि कुछ दब जाए, कोई पीड़ा पा जाए! अंधेरे में चलते नहीं थे कि कोई पैर के नीचे दब न जाए। अंधेरे में भोजन न करते थे कि कोई पतंगा गिर न जाए ।
जैन भी नहीं करता अंधेरे में भोजन - लेकिन इसलिए नहीं कि पतंगे से कुछ लेना-देना है। जैन का प्रयोजन इतना है कि पतंगा गिर गया और खा लिया, तो हिंसा हो जाएगी, नर्क जाओगे ! यह फि अपनी है, यह तंत्र है। महावीर की फिक्र अपनी नहीं है पतंगे की फिक्र है । यह सर्वतंत्र स्वतंत्रता! यह सर्व के साथ एकात्म भाव !
जैन मुनि भी चलता है पिच्छी लेकर, रास्ता अपना साफ कर लेता है जहां बैठता है। लेकिन उसका प्रयोजन भिन्न है, वह नियम का अनुसरण कर रहा है। अगर कोई देखने वाला नहीं होता तो वह बिना ही साफ किए बैठ जाता है। अगर दस आदमी देखने वाले बैठे हैं, श्रावक इकट्ठे हैं, तो वह बड़ी 'कुशलता से प्रदर्शन करता है। यह तो तंत्र है। ये तो एक अनुशासन मान कर चल रहे हैं। इन्होंने कुछ बातें पढ़ी हैं, सुनी हैं, समझी हैं, परंपरा से इन्होंने कुछ सूत्र लिए है उन सूत्रों के पीछे चल रहे हैं। इसलिए तो तुम जैन मुनि को प्रसन्न नहीं देखते। देखो महावीर की प्रसन्नता प्रसन्नता तो सदा स्वतंत्रता में है। और जीवन का आत्यंतिक अनुशासन भी स्वतंत्रता में है।
पूछा है, ' भारतीय मनीषा ने आत्मज्ञानी को सर्वतंत्र स्वतंत्र कहा। लेकिन मुझे आश्चर्य होता है कि उस परम स्वतंत्रता में इतना सुंदर अनुशासन और गहन दायित्व कैसे फलित हो सकता है!' उसके अतिरिक्त अगर फलित हो तो आश्चर्य करना । परतंत्रता में अगर सुंदर अनुशासन फलित हो जाए तो चमत्कार है। यह हो ही नहीं सकता। यह हुआ नहीं कभी । यह होगा भी नहीं कभी। अपने बेटे से कहती है कि मुझे प्रेम कर, क्योंकि मैं तेरी मां हूं । प्रेम में भी 'क्योंकिं', 'इसलिए! जैसे कि प्रेम भी कोई तर्कसरणी है, जैसे यह भी कोई गणित का सवाल है ! 'मैं तेरी मां हूं इसलिए मुझे प्रेम कर!'
बेटा भी सोचता है कि मां है तो प्रेम करना चाहिए ! प्रेम और करना चाहिए? तुमने प्रेम को