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कारण अच्छे लगे और उलझ गए तो वह भी दृष्टि है। समझ के कारण ठीक लगना एक बात है, सुनने के कारण ठीक लगना बिलकुल दूसरी बात है। तुम, सिर्फ कानों को प्रीतिकर लगे, इसलिए उलझ गए; कर्णमधुर लगे, इसलिए उलझ गए तो फिर तुम दृष्टि में उलझ गए। तुम्हारी समझ को ठीक लगे.। 'जब मन किसी दृष्टि अथवा विषय में लगा हुआ है तब बंध है।'
यदा चित्तम् कासु दृष्टिमु सक्तम् तदा बंधः। 'और मन सब दृष्टियों से जब अनासक्त है, तब मोक्ष है।'
__ यदा चित्तम् सर्वदृष्टिमु असक्तम् तदा मोक्षः।। जब तुम देखते हुए और नहीं देखते; चलते हुए और नहीं चलते, छूते हुए और नहीं छूते, सुनते हुए नहीं सुनते; सब होता रहता है, लेकिन तुम अपने द्रष्टा- भाव में थिर होते हो, वहां से तुम विचलित नहीं होते, वहां अविचलित तुम्हारी अंतरज्योति कंपती नहीं, कोई हवा का झोंका तुम्हें हिलाता नहीं; सब आता है जाता है, तुम वही के वही बने रहते हो, एकरस, ज्यों के त्यों-यही मोक्ष है। मोक्ष कहीं सात स्वर्गों के पार नहीं। और संसार बाजार में, दुकान में, व्यवसाय में नहीं। संसार तुम्हारे चित्त की एक दशा; मोक्ष भी तुम्हारे चित्त की एक दशा। मोक्ष वैसी दशा जैसा स्वाभाविक होना चाहिए; और संसार वैसी दशा जैसा रोग-ग्रस्त अवस्था में हो जाता है। संसार यानी बीमार आत्मा की अवस्था। मोक्ष यानी स्वस्थ आत्मा की अवस्था।
'स्वस्थ' शब्द बड़ा अच्छा है। इसका अर्थ ही होता है. स्वयं में स्थित। स्वास्थ्य का अर्थ ही होता है, जो स्वयं में स्थित हो गया। आत्मस्थ जो हुआ वही स्वस्थ, बाकी सब बीमार।
शरीर की बीमारी थोड़े ही कोई बीमारी है, असली बीमारी तो आत्मा का अस्वस्थ होना है। अपने से स्मृत हो जाना, अपने से हट जाना, अपने केंद्र से डावांडोल हो जाना. अस्वास्थ्य। अपने केंद्र पर बैठ जाना, अडिग. स्वास्थ्य। इसी स्वास्थ्य को अष्टावक्र मोक्ष कह रहे हैं।
'जब मैं हूं तब बंध है। जब मैं नहीं हूं तब मोक्ष है। कैसे प्यारे वचन हैं! इनसे श्रेष्ठ वचन तुम कहां खोज सकोगे!
'जब मैं हूं तब बंध है। जब मैं नहीं हूं तब मोक्ष है। इस प्रकार विचार करन इच्छा कर, न ग्रहण कर और न त्याग कर।'
सरल, अनूठे, पर अति कठिन! जितने सरल उतने कठिन। सरल ही तो हमें करना कठिन हो गया है। कठिन तो हम कर लेते हैं, सरल अटका देता है।
इसे थोड़ा समझना।
कठिन को तो करने में अहंकार को रस आता है, इसलिए कर लेते हैं। कठिन में तो अहंकार को चुनौती है, कुछ करके दिखला देने का मजा है। कठिन में तो कर्ता होने की सुविधा है। तो आदमी कठिन को करने में बड़ा उत्सुक होता है।
तुम ध्यान रखना, तुम जीवन में जो भी कर रहे हो, कहीं वह इसलिए तो नहीं कर रहे हो