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पूछा है 'हंस' ने।
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हंस के पास कवि का हृदय है और ठीक जो उसके हृदय में हो रहा है, वही इन शब्दों में बांध दिया है।
जो अभी हृदय में हो रहा है, जिसकी अभी थोड़ी- थोड़ी झलक है, वह कभी समय पा कर, ठीक अवसर पर ठीक मौसम में पका हुआ फल
भी बनेगा। तुम नाचोगे! तुम मस्त हो कर नाचोगे!
और जो व्यक्ति जहर पीने को राजी हो गया है मस्ती में, उसके लिए जहर भी अमृत हो जाता है। जो प्रभु के साथ चलने को राजी हो गया है - सब स्थितियों में, चाहे जहर पिलाए तो भी, चाहे नर्क में फेंक दे तो भी उसका नर्क समाप्त हुआ अब उसके लिए स्वर्ग ही स्वर्ग है।
'गर जाम नहीं है हाथों में आंखों से पिला दे, काफी है। अब जीने की है फिक्र किसे तू मुझे मिटा दे काफी है।
अब डोर तेरे ही हाथों में जी भर के नचा दे, काफी है। ना होश रहे बाकी, ऐसा पागल ही बना दे, काफी है। अब अमृत की है चाह किसे तू जहर पिला दे, काफी है।
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यह होगा। पिलाऊंगा। यह घटना घटेगी। भरे आशा से, प्रतीक्षा से, स्वीकार से तुम 'तैयार रहो-यह घटना घटेगी। यह घटना घटनी शुरू ही हो गई है। यह तुम्हारे गीत में तुमने जो भाव बाधा है, उसी सुबह की पहली किरण है। प्राची लाल होने लगी, प्राची पर लाली होने लगी- सूरज ऊगेगा! सूरज ऊगता ही है, हम जरा राजी भर हो जाएं। हमारे न राजी होने पर भी सूरज तो ऊगता ही है, लेकिन हम आंख खोल कर नहीं देखते। तो हम अंधेरे में ही रहे आते हैं। आंख बंद, तो हमारी रात जारी रहती है। जब हम राजी हो जाते हैं तो हम आंख खोल कर देखने की तत्परता दिखाते हैं! सूरज तो ऊगता ही रहा है। हर रात के बाद सुबह है। हर भटकन के बाद पड़ाव है। हर संसार के बाद मोक्ष है। बस हम आंख