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तुम्हारे अनुभव में सिर्फ एक ही बात होगी, क्योंकि तुम सभी राजनीतिज्ञ नहीं हो। पत्नी को तुम्हें अपने पीछे चलाना हो तो तुम्हें मालूम है पत्नी की एक-एक आकांक्षा पूरी करनी होती है तो ही वह तुम्हारे पीछे चलती है। वह कहती है, आप मालिक, मैं दासी! मगर दासी होने का मतलब समझ हैं? जब तक आप उसके दास न हो जाओ, वह दासी नहीं। लिखती है 'आपकी दासी', मगर मतलब साफ है। वह आपके पीछे-पीछे चलती है, जब भांवर पड़ती हैं; लेकिन अगर उसको जिंदगी भर अपने पीछे चलाना हो तो बड़े छिपे रूप में आपको उसके पीछे चलना होता है। नहीं तो वह आपके पीछे नहीं चलेगी। यह तो साझेदारी है. तुम हमारे पीछे तो हम तुम्हारे पीछे। यह तो सांठ-गांठ है।
राजनेता जिनको अपने पीछे चला रहा है, राजनेता उनके पीछे चलता होता है। वह लौट - लौट कर देखता रहता है, लोग कहां जा रहे हैं, उसी तरफ जाने लगता है। असली कुशल राजनीतिज्ञ का अर्थ ही यही है।
कुछ कुशल राजनीतिज्ञ नहीं होते तो उनकी अकुशलता का कारण क्या होता है? इतना ही हो है-अकुशल राजनीतिज्ञ वही है कि जो यह सोचने लगता है दुनिया मेरे पीछे चल रही है। वह झंझट में पड़ता है। मोरारजी देसाई से पूछो! अकुशल राजनीतिज्ञ की अकुशलता यही है कि वह सोचता है सब मेरे पीछे चल रहे हैं, मैं जहां जाऊंगा वहां दुनिया जाएगी। वह गलती में है। कुशल राजनीतिज्ञ वह है जो देख लेता है, लोग किस तरफ जा रहे हैं, उसी तरफ उनके आगे-आगे चलने लगता। समाजवाद ? समाजवाद सही! यही तो हम भी चाहते हैं!
मुल्ला नसरुद्दीन अपने गधे पर भागा जा रहा था। एक बाजार में लोगों ने उसे रोक लिया और पूछा कि कहा जा रहे हो? उसने कहा, मुझसे मत पूछो, मेरे गधे से पूछो ! क्योंकि मैं राजनीतिज्ञ हूं । पहले मैंने बहुत कोशिश की इस गधे को चलाने की, मगर गधा है। हम बाएं चलाएं, वह दाएं जाए । बीच बाजार में मखौल उड़े ! भीड़ इकट्ठी हो जाए कि अरे नसरुद्दीन, तुम्हारे गधे पर भी बस नहीं! क्या करें? फिर हमें समझ में आया कि गधे के साथ राजनीति करनी चाहिए। अब गधा जिस तरफ जाता है हम उसी तरफ जाते हैं। दुनिया यही समझती है कि हम गधे को चला रहे हैं, मगर गधा हम चला रहा है।
'मैत्रेय जी' राजनीति में थे। उन्होंने कभी सपना नहीं देखा होगा संन्यासी होने का, यह सच है। लेकिन रह कर राजनीति में कुछ भी न पाया। उस न पाने से संन्यास की तरफ वृत्ति हुई। उस पाने से वे दूसरी दिशा में झुकना शुरू हुए। राजनीतिज्ञ तो थे, लेकिन उनके पास राजनीतिज्ञ की प्रतिभा नहीं थी, बेईमानी नहीं थी। बड़े सरल आदमी हैं। संन्यास उन्हें स्वाभाविक पड़ा। राजनीति में वे बड़ी उलझन में पड़े थे। राजनीति में बड़ी बेचैनी में थे। अड़चन थी । वह उनके अनुकूल न था । वह उतने ओछे और छोटे आदमी नहीं थे।
वहां सफलता उनकी है जो जितने ओछे हैं, जितने छोटे हैं। वहां सफलता उनकी है, जो जितने नीचे उतर आएं। वहा कोई आदमी अगर सरल हो, सीधा-सादा हो, तो वहां सफलता नहीं है। वे गलत दिशा में पड़ गए थे। वह दिशा उनके लिए नहीं थी।