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शुरू हो जाता है। तुम्हारे कारण ही बाधा पड़ रही थी, अब कोई बाधा न रही।
'असहाय हो कर दुर्घटना के किनारे पहुंच जाता हूं और तभी चौंक कर जाग जाता हूं।' वहीं जागने की घटना घटेगी जहां अहंकार बिलकुल असहाय हो कर गिर जाता है। यह सपना सुंदर है। यह सपना बड़ा सार्थक है। इसका एक-एक प्रतीक मूल्यवान है। इसलिए यह बार-बार दोहर रहा होगा। क्योंकि यह सपना ही नहीं है, यह अजित की जिंदगी में भी घट रही बात है। सपना तो उसका प्रतिफलन है। सपना तो केवल छाया है अचेतन में उस घटना की जो उनके जीवन में चारों तरफ घट रही है।
'और तभी चौंक कर जाग जाता हूं।'
मैं
अगर जागना हो तो बेसहारा हो जाओ, असहाय हो जाओ। जब तक तुम्हें अकड़ रहेगी कि कुछ कर लूंगा, तब तक तुम सोए रहोगे। जब तक तुम्हें अकड़ रहेगी कि मैं कर्ता हूं तब तक तुम सोए रहोगे। जैसे ही तुम्हारी अकड़ टूटने लगेगी, न गियर सम्हलेगा, न ब्रेक, न स्टीयरिंग, अचानक गाड़ी चलने लगेगी तुम्हारे नियंत्रण के बाहर, उसी क्षण तुम जाग जाओगे।
अहंकार मूर्च्छा है, निद्रा है । निरहंकार होना जाग जाना है, अमूर्च्छा है।
'कभी-कभी कार जब उतार पर होती है, तब भी मेरा सब नियंत्रण जाता रहता है।
उतार से ही हम डरते हैं। उतार शब्द से ही घबड़ाहट है। चढ़ाव तो अहंकार को रस देता है, उतार, तो बेचैनी शुरू हो जाती है।
इसलिए तो जवानी में रस होता है, बुढापे में बेचैनी शुरू हो जाती है। कोई का नहीं होना चाहता। होना पड़ता है, यह दूसरी बात है। कोई होना नहीं चाहता। और लोग के भी हो जाते हैं, तब तक दावा भी करते रहते हैं कि वे जवान हैं। और लोग बड़े प्रसन्न होते हैं उनकी बात को सुन कर ।
पंडित जवाहरलाल नेहरू बुढ़ापे तक कहते रहे हैं कि मैं जवान हूं और सारा मुल्क प्रसन्न होता था कि बिलकुल ठीक बात है।
यह क्या बात हुई? चढ़ाव पर ही रहने में रस है, उतार को स्वीकार करने की भी हिम्मत नहीं ? लेकिन मुल्क को बड़ा अच्छा लगता था कि मुल्क का प्रधानमंत्री कहता है कि मैं जवान हूं बुढ़ापे में कि मैं साठ साल का जवान हूं, कि मैं पैंसठ साल का जवान हूं! हम बड़े प्रसन्न होते थे। वह प्रसन्नता हमारे भीतर की आकांक्षा को बताती है। हममें से भी कोई बूढ़ा नहीं होना चाहता है। हम सब जवान रहना चाहते हैं। हम सब चढ़ाव पर रहना चाहते हैं, सदा चढ़ाव पर रहना चाहते हैं।
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मगर सोचो भी तो, चढ़ाव बिना उतार के हो कैसे सकते हैं? चढ़ते ही रहोगे और उतार न होगा तो पागल हो जाओगे। हर पहाड़ के पास खाई होगी, खड्ड होगा। हर बड़ी लहर के पीछे गड्डा होगा। जवानी के साथ बुढ़ापा जुड़ा है। और अगर जवान ही कोई रह जाए, अटक जाए तो सड़ाध पैदा होगी, बहाव मिट जाएगा। का होना बिलकुल स्वाभाविक है। जैसे जवानी को स्वीकार किया, वैसे बुढ़ापे को स्वीकार करना । जो अटक गया जवानी में, उसका प्रवाह रुक गया।
बुढ़ापे से हम सभी घबड़ाते हैं। जब आदमी देखता है पहले बाल सफेद होने लगे, तो बड़ा घबड़ा