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समझ गये, यहीं उतर गये।
वे घबडाए, क्योंकि गाड़ी छूटी जा रही है। और उस आदमी को साथ ले आये हैं, कहां उसे छोड़ जाएं? उनमें से कुछ उतरे और जबर्दस्ती उसे चढ़ाया। वह चिल्लाता - चीखता रहा । उसने कहा, यह कर क्या रहे हो? जब उतरना ही है तो हम क्यों इस मुसीबत में फंसे ?
पर उन्होंने उसकी कोई फिक्र नहीं की। उन्होंने कहा, विवाद पीछे कर लेंगे, पहले तू चढ़ा अब तुझे हम कहां छोड़ जायें यहां अनजान जगह में?
कहीं गांव से आते थे। खैर किसी तरह उसको चढ़ा लिया। बड़ी मुश्किल वह चढ़ा। एक तो वैसे ही भीड़ थी और वह चढ़ने में झगड़ा खड़ा कर रहा था । वहक उतर जाना चाहता था। चढ़ गया। फिर हरिद्वार आ गया। अब उतारने की झंझट खड़ी हुई । वह उतरता नहीं। वह कहता है, जब चढ़ ही गये, जब एक दफा चढ़ ही गये तो अब क्या उतरना बार - बार ? अब फिर चढ़ने की झंझट होगी। इसलिए हम चढ़े ही रहेंगे। अब हमें तुम यहीं छोड़ दो, तुम जाओ।
अब उसको वे जबर्दस्ती उतार रहे हैं। वह आदमी चिल्ला रहा है कि तुम कैसे असंगत हो? क्षण भर पहले चढ़ाते, क्षण भर बाद उतारते - असंगति तो देखो ! तुम मुझे दुविधा में डाल रहे हो। तुम मुझे सीधा सार-सूत्र कह दो कि या चढ़ना या उतरना, तो हम निपटा लें। हम वही हो जाएं।
तुम जिंदगी को इतना तर्क से अगर चले तो बड़ी बुरी तरह चूकोगे। अगर तुम चढ़ोगे ही नहीं तो तीर्थ नहीं पहुंचोगे। और अगर चढ़े ही रह गए तो भी तीर्थ नहीं पहुंचोगे ।
इसलिए मैं तुमसे कहता हूं कि ध्यान भी करना और एक दिन स्मरण रखना कि ध्यान भी छोड़ देना है। दोनों बातें तुमसे कहता हूं। तुमतो चाहोगे कि कोई एक कहूं तो तुम्हें सुविधा हो जाए। तुम सुविधा की फिक्र कर रहे हो तुम साधना की फिक्र नहीं कर रहे हो। तुम सुविधा खोज रहे हो। तुम क्रांति नहीं खोज रहे हो।
तो सुविधाओं में दो उपाय हैं। या तो मैं तुमसे कहूं कि करो ही मत। जैसे कृष्णमुर्ति कहते हैं- उनकी बात सीधी-साफ है- ध्यान करने की कोई जरूरत नहीं । जिनको ध्यान नहीं करना है वे उनके पास इकट्ठे हो गए हैं; यद्यपि उन्हें कुछ भी नहीं हुआ।
मेरे पास आते हैं लोग। वे कहते हैं, हम कृष्णमूर्ति को सुनते-सुनते थक गए। हमें बात भी समझ में आ गई कि ध्यान इत्यादि में कुछ भी नहीं है, मगर हमें कुछ हुआ भी नहीं है। कुछ हुआ भी नहीं है और समझ में भी आ गया है कि ध्यान इत्यादि में कुछ भी नहीं है।
ये इसी पार रह गए, नाव पर न चढ़े। फिर दूसरी तरफ महेश योगी या उन जैसे लोग हैं, जो कहते हैं. 'ध्यान, ध्यान, ध्यान! करो!' और फिर कभी नहीं कहते कि इसे छोड़ना है। तो कुछ लोग हैं जो बस जप रहे हैं राम, राम, राम, राम राम राम जपते ही चले जाते हैं। जिंदगी गुजर गई। वे भी मेरे पास आ जाते हैं। वे कहते हैं, राम राम जपते हम थक गए, अब कब तक जपते रहें? और ध्यान तो छोड़ा नहीं जा सकता। ध्यान तो धर्म की विधि है।
तुम मेरी स्थिति को समझने की कोशिश करो। मैं तुमसे कहता हूं, ध्यान शुरू करो। नहीं तो