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त्याग किया। जो होता था, होने दिया। हम करते भी क्या ? जो होता था, होने दिया। देखते रहे। अपने देखने को विशुद्ध रखा !
न ते संगोउस्ति केनापि किं शुद्धस्लक्ट्रमिच्छसि। संघातविलय कुर्वन्नेवमेव लय व्रज ।।
ते केन अपि संग: न.. |
तेरा कोई संगी-साथी नहीं छोड़ना किसको चाहता है? कोई संगी-साथी होता तो छोड़ देते। समझो, बारीक है सूत्र समझा तो क्रांति घट सकती है। कोई मेरे पास आता है, वह कहता है, पत्नी-बच्चे छोड़ने हैं। तो उसने एक बात तो मान ही ली कि पत्नी-बच्चे उसके हैं। कोई मेरे पास आता है, कहता है, धन छोड़ना है, घर-द्वार छोड़ना है। मैं उससे पूछता हूं 'तुझे पक्का है कि वे तेरे हैं? तू न छोड़ेगा तो तेरे रहेंगे? कल तू मरेगा, फिर क्या करेगा ? मरते वक्त तू कहेगा कि ये मेरे हैं और छूट रहे हैं, यह मामला क्या है? जन्म के पहले तू तो नहीं था, मकान यहीं था। जिस तिजोड़ी में तूने हीरे भर रखे हैं, वे भी यहीं थे, तू नहीं था। वे किसी और के थे। किसी और को भ्रांति थी कि मेरे हैं। अब तुझे भ्रांति है कि मेरे हैं। तू जब नहीं था, तब भी थे; तू नहीं रहेगा, तब भी होंगे। छोड़ेगा तू? छोड़ना तो तभी घट सकता है जब तुझे पक्का हो कि ये मेरे हैं। मेरे हैं, तो छोड़ना संभव है। अगर मेरे नहीं हैं तो छोड़ेगा कैसे? छोड़ने में तो मालकियत का दावा जारी है।
जिस आदमी ने कहा, मैंने छोड़ दिया संसार, वह आदमी अभी छोड़ नहीं पाया, क्योंकि छोड़ने भी दावेदार मौजूद है। वह कहता है, मैंने छोड़ा! तो उसने पहली भांति को अभी भी पकड़ा हुआ है कि मेरा था ! जो मेरा हो तो छोड़ा जा सकता है।
ते केन अपि संग: न.. |
तेरा कौन संगी, तेरा कौन साथी ! अकेला तू आता, अकेला तू जाता ! न कुछ ले कर आता, न कुछ ले कर जाता! खाली हाथ आता, खाली हाथ जाता !
मामला तो अजीब ही है। आदमी जब पैदा होता है तो बंधी मुट्ठी, मरता है तो खुली मुट्ठी । और बुरी हालत में मरता है। कम से कम बंधी मुट्ठी ले कर आता है, बच्चा जब आता है। नहीं सही, कुछ भी नहीं है उसमें, कम से कम बंस्री मुट्ठी. लोग कहते हैं बंधी मुट्ठी लाख की, खुली तो खाक की ! जब मरता है तो मुट्ठी खुल जाती है, खाक की हो जाती है। न तो बंधी मुट्ठी में कुछ था, न खुली मुट्ठी में कुछ था। लेकिन बंधी मुट्ठी में कम से कम भ्रम तो था कि कुछ है। न हम कुछ लाते, न हम कुछ ले जाते। छोड़ेगा क्या? छोड़ने को क्या है?
तेन अपि संग न अतः शुद्धः ।
बड़ा अदभुत सूत्र है। बड़े वैज्ञानिक सूत्र हैं ! तेरा कोई संगी नहीं, साथी नहीं, तेरी कोई मालकियत नहीं, तेरी कोई वस्तु नहीं। अतः शुद्धः । इसलिए तू शुद्ध है। क्योंकि मालकियत भ्रष्ट करती है। तुमने देखा, जिस चीज पर मालकियत कायम करो, उसी की मालकियत तुम पर कायम हो जाती है! बनो किसी स्त्री के स्वामी और वह तुम्हारी मालिक हो गई। बनो मकान के मालिक और