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फकीर आया, लेकिन सम्राट हैरान हुआ. वह नगर के दवार पर उसकी प्रतीक्षा करता था अपने पूरे दरबारियों को लेकर, लेकिन चकित हुआ वर्षा के दिन न थे, राहें सूखी पड़ी थीं, लोग पानी के लिए तडूफ रहे थे और फकीर घुटनों तक कीचड़ से भरा था। वह भरोसा न कर सका कि इतनी कीचड़ राह में कहां मिल गई, और घुटने तक कीचड़ से भरा हुआ है। पर सबके सामने कुछ कहना ठीक न था। दोनों राजमहल पहुंचे। जब दोनों एकांत में पहुंचे तो सम्राट ने पूछा कि मुझे कहें यह अड़चन कहां आई? आपके पैर कीचड़ से भरे हैं!
उसने कहा, अड़चन का कोई सवाल नहीं। जब मैं आ रहा था तो लोगों ने मुझसे कहा कि तुम्हें पता है, तुम्हारा मित्र, सम्राट, अपना वैभव दिखाने के लिए राजधानी को सजा रहा है? वह तुम्हें झेंपाना चाहता है। तुम्हें कहना चाहता है, 'तुमने क्या पाया? नंगे फकीर हो! देखो मुझे!' उसने रास्ते पर बहु मूल्य कालीन बिछाए, लाखों रुपये खर्च किए गए हैं। राजधानी दुल्हन की तरह सजी है। वह तुम्हें दिखाना चाहता है। वह तुम्हें फीका करना चाहता है।. तो मैंने कहा कि देख लिए ऐसा फीका करने वाले! अगर वह बहु मूल्य कालीन बिछा सकता है तो मैं फकीर हूं मैं कीचड़ भरे पैरों से उन कालीनों पर चल सकता हूं। मैं दो कौड़ी का मूल्य नहीं मानता
___ जब उसने ये बातें कहीं तो सम्राट ने कहा, अब मैं निश्चित हुआ। मेरी जिज्ञासा शांत हुई। आपने मुझे तृप्त कर दिया। यही मेरी जिज्ञासा थी।
फकीर ने पूछा, क्या जिज्ञासा थी?
'यही जिज्ञासा थी कि आपको मैं सदा से जानता हूं। स्कूल में कालेज में आपसे ज्यादा अहंकारी कोई भी न था। आप इतनी विनम्रता को उपलब्ध हो गए, यही मुझे संदेह होता था। अब मुझे कोई चिंता नहीं। आओ हम गले मिलें, हम एक ही जैसे हैं। तुम मुझ ही जैसे हो। कुछ फर्क नहीं हुआ है। मैंने एक तरह से अपने अहंकार को भरने की चेष्टा की है-सम्राट हो कर; तुम दूसरी तरह से उसी अहंकार को भरने की चेष्टा कर रहे हो। हमारी दिशाएं अलग हों, हमारे लक्ष्य अलग नहीं। और मैं तुमसे इतना कहना चाहता हूं मुझे तो पता है कि मैं अहंकारी हूं तुम्हें पता ही नहीं कि तुम अहंकारी हो। तो मैं तो किसी न किसी दिन इस अहंकार से ऊब ही जाऊंगा, तुम कैसे ऊबोगे? तुम पर मुझे बड़ी दया आती है। तुमने तो अहंकार को खूब सजा लिया। तुमने तो उसे त्याग के वस्त्र पहना दिए।'
जो व्यक्ति संसार से ऊबता है, उसके लिए त्याग का खतरा है।
दुनिया में दो तरह के संसारी हैं-एक, जो दुकानों में बैठे हैं; और एक, जो मंदिरों में बैठे हैं। दुनिया में दो तरह के संसारी हैं-एक, जो धन इकट्ठा कर रहे हैं: एक जिन्होंने धन पर लात मार दी है। दुनिया में दो तरह के दुनियादार हैं-एक जो बाहर की चीजों से अपने को भर रहे हैं; और दूसरे, जो सोचते हैं कि बाहर की चीजों को छोड़ने से अपने को भर लेंगे। दोनों की भ्रांति एक ही है। न तो बाहर की चीजों से कभी कोई अपने को भर सकता है और न बाहर की चीजों को छोड़ कर अपने को भर सकता है। भराव का कोई भी संबंध बाहर से नहीं है।
अष्टावक्र ने पहले तो परीक्षा ली जनक की। आज के सूत्रों में परीक्षा नहीं लेते, प्रलोभन देते