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नहीं होता है। दो! जरूरी नहीं कि तुम कुछ दो ही.।
टालस्टॉय ने अपने संस्मरणों में लिखा है कि मैं एक दिन जा रहा था एक राह के किनारे से, एक भिखमंगे ने हाथ फैला दिया। सबह थी, अभी सरज ऊगा था और टालस्टॉय बडी प्रसन्न मद्रा
पा, इंकार न कर सका। अभी-अभी चर्च से प्रार्थना करके भी लौट रहा था, तो वह हाथ उसे परमात्मा का ही हाथ मालूम पड़ा। उसने अपने खीसे टटोले, कुछ भी नहीं था। दूसरे खीसे में देखा, वहा भी कुछ नहीं था। वह जरा बेचैन होने लगा। उस भिखारी ने कहा कि नहीं, बेचैन न हों, आपने देना चाहा, इतना ही क्या कम है! टालस्टॉय ने उसका हाथ अपने हाथ में ले लिया। और टालस्टॉय कहता है, मेरी आंखें आंसुओ से भर गईं। मैंने उसे कुछ भी न दिया, उसने मुझे इतना दे दिया। उसने कहा कि आप बेचैन न हों! आपने टटोला, देना चाहा-इतना क्या कम है? बहुत दे दिया
न दे कर भी देना हो सकता है। और कभी-कभी दे कर भी देना नहीं होता। अगर बेमन से दिया तो देना नहीं हो पाता। अगर मन से देना चाहा, न भी दे पाए, तो भी देना घट जाता है-ऐसा जीवन का रहस्य है।
बांटते चलो! धीरे- धीरे तुम पाओगे, जैसे-जैसे तुम बांटने लगे ऊर्जा, वैसे-वैसे तुम्हारे भीतर से कहीं परमात्मा का सागर तुम्हें भरता जाता। नई-नई ऊर्जा आती, नई तरंगें आतीं। और एक दफा यह तुम्हें गणित समझ में आ जाए. .यह जीवन का अर्थशास्त्र नहीं है, यह परमात्मा का अर्थशास्त्र है, यह बिलकुल अलग है। जीवन का अर्थशास्त्र तो यह है कि जो है, अगर नहीं बचाया तो लुटे। इसको तो बचाना, नहीं तो भीख मांगोगे!
मैंने सुना, एक भिखमंगा मुल्ला नसरुद्दीन के द्वार पर भीख मांग रहा था। मुल्ला ने उसे खूब दिल खोल कर दिया। खिलाया, पिलाया, वस्त्र पहनाए, जाने लगा तो दस का नोट भी दिया। फिर मुल्ला ने उससे पूछा कि तुम आदमी तो भले मालूम पड़ते हो तुम्हारे चेहरे से संस्कार मालूम पड़ता है। तुम्हारे वस्त्र भी यद्यपि दीन, मलिन हैं, फटे-पुराने हैं, लेकिन कीमती मालूम होते हैं। यह दशा तुम्हारी कैसे हुई?
वह कहने लगा, जैसे आप कर रहे हैं, ऐसे ही मैं करता था। जल्दी आपकी भी यही दशा हो जाएगी। दे-दे कर यह दशा हुई। बांटता रहा, उसी में लूट गया।
तो एक तो इस बाहर के जगत का अर्थशास्त्र है : यहां छीनो तो मिलेगा, यहां दो तो खो जाएगा। एक भीतर का अर्थशास्त्र है, कबीर ने कहा दोनों हाथ उलीचिए! उलीचते रही तो नया आता रहेगा। बांटते रहो तो मिलता रहेगा। जो बचाया वह गया; जो दिया वह बचा। जो तुमने बांट दिया और दे दिया, वही तुम्हारा है अंतर के जगत में।
तो दो काम करो : प्रेम बाटो और आंसुओ को आने दो।
और दोनों साथ-साथ हो जाएंगे, क्योंकि दोनों एक ही घटना के हिस्से हैं। जितना हृदय में प्रेम बंटने लगता है, उतनी आंखें गीली होने लगती हैं, नम होने लगती हैं।
प्राण की चिरसगिनी यह वहि