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और तुम जो प्रश्न पूछ रहे हो, वह फिर बुद्धि का है-'कैसे?' तुम बुद्धि से ही बुद्धि को न हटा सकोगे। रोओ, दिल भर कर रोओ। कौन रोकता है? पहले संकोच लगेगा, तो एकांत में चले गए, वृक्षों के पास बैठ लिए। वृक्ष तुम्हारा बिलकुल भी अपमान न करेंगे कि रो रहे, अरे स्त्रैण मालूम होते! वृक्ष तुमसे बिलकुल न कहेंगे कि प्रीतम रोओ मत, यह पुरुष जैसा नहीं मालूम पड़ता, अरे बहादुर आदमी, तुम रो रहे? चले जाओ पहाड़ियों में, चले जाओ नदी के तट पर। रोओ! वृक्ष तुम्हें स्वीकार करेंगे। नदियां तुम्हें स्वीकार कर लेंगी! पहाड़ तुम्हें स्वीकार कर लेंगे। दिल भर कर रोओ। रोने के लिए 'कैसे क्या पूछना? रोना शुरू करो।
रोना तो एक कृत्य है। कैसे का कोई सवाल नहीं है। कैसे का तो मतलब यह है कि अब तुम पहले इंतजाम करोगे, विधि-विधान करोगे, अनुष्ठान करोगे, आयोजन करोगे कि कैसे रोएं। तो क्या करोगे? मिर्ची पीस कर आंखों में डालोगे? तो रोना झूठा हो जाएगा।
अभिनेता वैसा करते हैं। अब रामलीला में राम को रोना पड़ रहा है और सीता का उन्हें कोई दर्द है नहीं। सीता है भी नहीं सीता, गांव का कोई लड़का ही बना हुआ है। हो सकता है राम और सीता में झगड़ा भी हो। तो अब क्या करना? तो मिर्च का थोड़ा-सा मसाला बना लेते हैं। उसको हाथ में लगाए रखते हैं। जब रोना पड़ता है राम को तो वे अपनी आंख में लगा लेते, आंसू बहने लगते हैं। आयोजन करके जो रोना आएगा, वह झूठा हो जाएगा। चेष्टा से जो आंसू आएंगे, वे आंसू न रहे, उनका प्रसाद-गुण खो गया। इतना कुछ है चारों तरफ इतना दुख है, उसे देखकर रोओ! इतनी पीड़ा है, उसे देखकर रोओ! इतना आनंद है, उसे देखकर रोओ! इतने फूल खिले हैं, उन्हें देखकर रोओ! इतने चांद-तारे हैं, उन्हें देखकर रोओ! रोने के लिए क्या कमी है? पूरा आयोजन है। और रोओ-ध्यानपूर्वक! डोलो रोने में! नाचो रोने में! बहने दो आंसुओ की धार!
। शुरू-शुरू में कठिनाई होगी, क्योंकि बहुत दिन का अवरुद्ध है तो शायद तुम भूल गए होओ। स्वात में जाकर बैठ जाओ और प्रतीक्षा करो। किसी-न-किसी दिन तुम अचानक पाओगे, आंखों से आंसू बहने लगे अकारण।
लोग सोचते हैं, कारण चाहिए। घर में कोई मरेगा तो रोके। मृत्यु रोज घट रही है: तुम्हारे घर में घटेगी, इसके लिए क्या प्रतीक्षा करते हो? जीवन मृत्यु से घिरा है। चले जाओ मरघट पर।
बुद्ध भेज देते थे अपने भिक्षुओं को मरघट पर कि तीन महीने वहीं ध्यान कर लो। कोई लाश आएगी, जलेगी, तुम बैठ कर देखते रहो।
रोना है तो हर जगह सुविधा है। कारण खोजने की कोई विशेष जरूरत ही नहीं; सब जगह कारण मौजूद है। देखते हो, वृक्ष पर पत्ता था, कल तक हरा था, आज पीला हो गया! देखते रहो उस पीले होते पत्ते को और तुम पाओगे तुम्हारी आंखें डबडबा आईं। और तुम पाओगे वह पत्ता पीला होकर गिरने लगा, वह टूट गया, अब जमीन पर पड़ा है। ऐसे ही सब गिर जाएगा। ऐसे ही तुम गिर जाओगे। ऐसा गिरना ही होने वाला है।
जो फला, सो झरा। यहां जो जन्मा, सो मरा। यहां सब तरफ इन हरे-से-हरे वृक्षों को भी मृत्यु