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पत्नी वापिस लौटी। पति ने पूछा, क्या हुआ? उसने कहा कि प्रधान पुरोहित ने तो किताब एकदम बाहर फेंक दी; वे तो ऐसे नाराज हो गए कि मुझ पर हमला न कर दें। उन्होंने तो ऐसे किया कि जैसे मैंने हाथ में अंगारा रख दिया हो। मगर उनके पास ही एक दूसरे धर्मगुरु बैठे थे। उन्होंने कहा कि नहीं, यह करना उचित नहीं है, पत्नी को चले जाने देते, फिर फेंक देते, या फिर रखी रहती किताब, इतनी किताबें पड़ी हैं! तुम्हारे घर में विरोधियों की किताबें भी रखी हैं, तो यह तो यहूदी है, माना कि बगावती है। रख लेते, पड़ी रहती लायब्रेरी में, क्या बिगड़ता था?
पति ने कहा. जिसने किताब फेंकी, उसे तो हम किसी न किसी दिन बदल लेंगे, लेकिन दूसरे से हमारा कोई संबंध नहीं बन सकता।
समझे आप मतलब?
जिसने किताब फेंकी, उससे तो रागात्मक संबंध बन गया। वह कम से कम इतना तो राग है उसका, जोश तो आया ! उसने कुछ किया तो, तरंग तो उठी। वह जो बैठ कर शांति से कह रहा है, रख लो, डाल दो, किनारे में पडी रहेगी लायब्रेरी में, वह उपेक्षा से भरा आदमी है, उससे हम कभी कोई संबंध न बना पाएंगे। इस धर्मगुरु को तो हम बदल लेंगे, लेकिन दूसरे धर्मगुरु से हमारा कोई संबंध न बन पाएगा। मैं दूसरे के लिए दुखी हूं ।
पत्नी तो बहुत चौंकी। वह तो सोचती थी, दूसरा भला आदमी है; पहला आदमी बुरा है। लेकिन उसके पति ने कहा कि पहला आदमी तो हमारे चक्कर में आ ही चुका है, दूसरा खतरनाक है। मैं तुमसे कहता हूं कि पहला तो उठा कर किताब पडेगा । जिसने इतने जोश से फेंकी है वह बिना पढ़े नहीं रह सकता, क्योंकि इस जोश को कैसे शांत करेगा? वह तो उत्सुक हो ही गया। मैं उसका पीछा करूंगा; रात सपने में दिखाई पडूगा। मैं उसके सिर के आसपास घूमूंगा । वह सोचेगा, कई बार कि फेंकना कि नहीं फेंकना था, देख तो लूं इसमें लिखा क्या है !
मेरा विरोध करते हैं, वे निश्चित रूप से मेरी किताब पढ़ते हैं - यह तुम खयाल रखना। उनसे मेरा संबंध बन चुका है। उनसे मेरे हृदय का नाता जुड़ गया है, धीरे- धीरे खींच लूंगा। लेकिन जो विरोध भी नहीं करते, विरोध तक नहीं करते, उनके साथ बड़ा मुश्किल है। उनके हृदय का दरवाजा पाना बहुत मुश्किल है। उनके दरवाजे सब बंद हैं।
और यह बिलकुल स्वाभाविक है। जितनी क्रांति की बात होगी, उतनी ही कठिनाई होती है। लोग परंपरा से जीते हैं। लोग परंपरा में सुविधा और सुरक्षा पाते हैं। बदलाहट साहसियों का काम है, दुस्साहसियों का काम है। उतना साहस जिसमें नहीं होता, वह विरोध न करे तो क्या करे? उसका विरोध तो समझो, वह यह कह रहा है कि इतना साहस मुझ में नहीं है, तो या तो मैं यह स्वीकार करूं कि मैं कायर और कमजोर हूं और या सिद्ध करूं कि यह बात गलत है। तो पहले वह कोशिश करता है सिद्ध करने की कि बात गलत है, जाने योग्य है ही नहीं, इसलिए हम नहीं जाते। नहीं तो उसे साफ हो जाएगा, अगर जाने योग्य है और नहीं जाते, तो फिर हम कायर हैं। अहंकार को फिर चोट लगती है। वह अहंकार की सुरक्षा है विरोध |