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मगर जगने को कोई राजी नहीं।
___हमने भारत में सूली नहीं दी-सज्जनों का देश है! मारपीट, झगड़ा-झांसे में हम भरोसा नहीं करते-अहिसकों का देश है! शाकाहारियों का देश है! बड़ी पुरानी हमारी परंपरा है। हम कहते हैं, जिसको हाथ जोड़ कर, पैर छू कर छुटकारा पाया जा सकता है, उसको सूली पर क्यों लटकाना? और सूली पर लटकाने से झंझट ही बढ़ती है; आखिर सोने वाले आदमी को सूली बनाना पड़े, ले जाओ, सूली पर लटकाओ..। पैर छू लिए कि महाराज साष्टाग दंडवत है, आप जाएं! हमने समझ ली तरकीब।
तो जो जीसस के साथ यहूदियों ने किया वह हमने बुद्ध के साथ नहीं किया। कभी इक्के-दुक्के किसी पागल ने पत्थर फेंक दिया, लेकिन आमतौर से समाज ने कहा कि आप ईश्वर के अवतार हैं। महावीर को हमने थोड़ी-बहुत गाली गलौज दी, लेकिन कोई जहर नहीं पिला दिया, जैसा सुकारात को यूनान में पिला दिया। हमने कबीरको कोई मंसूर की तरह काट नहीं डाला है, जैसा मसलमानों ने मंसूर को काट दिया। सज्जनों का देश है! हम तरकीब ज्यादा बेहतर जान गए। हम समझ गए कि जहां सुई से काम हो जाता है, वहां तलवार की क्या जरूरत? मंदिर में बिठा देते हैं, मूर्ति बना देते हैं, फूल चढ़ा देंगे, शास्त्र बना देते हैं और क्या चाहिए? मगर जगाने की कोशिश मत करो!
समाज कभी भी नहीं जागेगा। समाज तो सोई हुई भीड़ है। इस भीड़ में से कभी कभी कोई विरला पुरुष जागता है।
तो तुम यह तो पूछो ही मत यह तो बात ही मत करो। मैं तुम्हारी किसी भ्रांति में किसी तरह का सहारा देने को तैयार नहीं हूं। मैं नहीं तुमसे कहता कि मेरे द्वारा नवजागरण आएगा सारी दुनिया में क्रांति हो जाएगी, राम-राज्य स्थापित हो जाएगा। हो चुकीं ये पागलपन की बातें बहुत। राम से नहीं हुआ रामराज्य स्थापित, तो किसी दूसरे से कैसे हो जाएगा? कृष्ण से नहीं हुआ हार गए सिर पटक-पटक कर! बुद्ध से नहीं हुआ तो मुझसे कैसे हो जाएगा?
नहीं, बुद्ध और कृष्ण और राम ने वैसी भ्रांति पाली ही नहीं, वह भ्रांति तुम पाले हुए हो। बुद्ध तो बार-बार कहते हैं कि अपने दीये बनो; मेरे दवारा कुछ भी न होगा। महावीर बार-बार कहते हैं. अपनी शरण जाओ, मेरी शरण आने से क्या होगा पड
महावीर ने तो बहुत साफ कहा है कि मैं स्वयं जागा हूं, मैं तुम्हारे कल्याण के लिए नहीं आया हूं यदयपि जैन अभी भी कहे जाते हैं कि जगत के कल्याण के लिए उनका जन्म हुआ। महावीर कहते हैं, मैं तुम्हारे कल्याण के लिए नहीं आया, क्योंकि कोई दूसरा तुम्हारा कल्याण कैसे करेगा? और अगर दूसरा तुम्हारा कल्याण कर सके तो वह कल्याण भी दो कौड़ी का होगा। उसमें तुम्हारा विकास फलित नहीं होगा, तुम्हारी आंतरिक उत्कांति घटित नहीं होगी। वह उधार होगा, बासा होगा। तो महावीर कहते हैं. अपनी शरण जाओ, समझो, अपने को जगाओ!
..... धर्म का जगत कब निर्मित होगा?' झूठे सपने मत देखो। जगत अधर्म का रहेगा। इसमें कभी कभी धार्मिक व्यक्ति गाते रहेंगे।