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पूना के किस मोहल्ले के कालीदास हैं ?'
मोहल्ले-मोहल्ले में कालीदास हैं, मोहल्ले-मोहल्ले में टैगोर हैं। हर आदमी यही सोचता है कि अनूठी, अद्वितीय प्रतिभा है उसकी !
अरब में कहावत है कि परमात्मा जब किसी आदमी को बनाता है तो उसके कान में कह देता है, तुमसे बेहतर आदमी कभी बनाया नहीं। और यह सभी से कहता है । यह मजाक बड़ी गहरी है। और हर आदमी मन में यही खयाल लिए जीता है कि मुझसे बेहतर आदमी कोई बनाया ही नहीं । मैं सर्वोत्कृष्ट कृति हूं। कोई माने न माने, तो वह उसकी नासमझी है। ऐसे मैं सर्वोत्कृष्ट कृति हूं !
इस दंभ में जीता आदमी बड़े दुख पाता है। क्योंकि इस दंभ के कारण वह बड़ी अपेक्षाएं करता जो कभी पूरी नहीं होंगी। उसकी अपेक्षाएं अनंत हैं; जीवन बहुत छोटा है। जिसने भी अपेक्षा बांधी वह दुखी होगा।
इस जीवन को एक और ढंग से भी जीने की कला है - अपेक्षा - शून्य; बिना कुछ मांगे; जो मिल जाये, उसके प्रति धन्यवाद से भरे हुए; कृतज्ञ भाव से ! वही आस्तिक की प्रक्रिया है ।
जो तुम्हें मिला है वह इतना है ! मगर तुम उसे देखो तब न !
मैंने सुना है, एक आदमी मरने जा रहा था। जिस नदी के किनारे वह मरने गया, एक सूफी फकीर बैठा हुआ था। उसने कहा, 'क्या कर रहे हो ?' वह कूदने को ही था, उसने कहा: 'अब रोको मत, बहुत हो गया ! जिंदगी में कुछ भी नहीं, सब बेकार है ! जो चाहा, नहीं मिला। जो नहीं चाहा, वही मिला। परमात्मा मेरे खिलाफ है। तो मैं भी क्यों स्वीकार करूं यह जीवन ?'
उस फकीर ने कहा, 'ऐसा करो, एक दिन के लिए रुक जाओ, फिर मर जाना । इतनी जल्दी क्या ? तुम कहते हो, तुम्हारे पास कुछ भी नहीं ?'
उसने कहा, 'कुछ भी नहीं! कुछ होता तो मरने क्यों आता ?'
उस फकीर ने कहा, 'तुम मेरे साथ आओ। इस गांव का राजा मेरा मित्र है ।'
फकीर उसे ले गया। उसने सम्राट कान में कुछ कहा । सम्राट ने कहा, 'एक लाख रुपये दूंगा।' उस आदमी ने इतना ही सुना; फकीर ने क्या कहा कान वह नहीं सुना । सम्राट ने कहा, 'एक लाख रुपये दूंगा।' फकीर आया और उस आदमी के कान में बोला कि सम्राट तुम्हारी दोनों आंखें एक लाख रुपये में खरीदने को तैयार है । बेचते हों ?
उसने कहा, 'क्या मतलब? आंख, और बेच दूं ! लाख रुपये में ! दस लाख दे तो भी नहीं देने वाला ।'
तो वह सम्राट के पास फिर गया। उसने कहा, 'अच्छा ग्यारह लाख देंगे।'
उस आदमी ने कहा, 'छोड़ो भी, यह धंधा करना ही नहीं। आंख बेचेंगे क्यों?"
फकीर ने कहा, 'कान बेचोगे ? नाक बेचोगे ? यह सम्राट हर चीज खरीदने को तैयार है । और जो दाम मांगो देने को तैयार है ।'
उसने कहा, 'नहीं, यह धंधा हमें करना 'नहीं, बेचेंगे क्यों?'
उस फकीर ने कहा, 'जरा देख, आंख तू ग्यारह लाख में भी बेचने को तैयार नहीं, और रात तू मरने जा रहा था और कह रहा था कि मेरे पास कुछ भी नहीं है ! '
जैसी मति वैसी गति
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