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"उग्घाडा पोरिसी" इस प्रकार मुनि का वचन सुनकर अपूर्ण काल में (पोरिसी पच्च० ) प्रत्याख्यान पारना । वह साहुवयणं आगार कहलाता है | शरीरादि की स्वस्थता के लिए जो आगार इसे सव्वसमाहि वत्तिया गारेणं आगार कहा जाता है । संघ विगेरे के महान कार्य वाला (= प्रयोजन वाला) अथवा महानिर्जरा वाला आगार उसे महत्तरागार आगार कहा जाता है, और गृहस्थ तथा बन्दी विगेरे संबंधि आगार उसे सागारी आगार कहा जाता है | ॥२५॥
आउंटण-मंगाणं, गुरु- पाहुण - साहु गुरुअब्भुट्ठाणं; परिद्वावणविहि- गहिए, जईण पावरणि कडिट्टो ॥ २६ ॥
अंग को संकुचित प्रसारण करना वह "आउटणपसारेण " आगार, गुरु या प्राहुणा साधु (वडीलसाधु) के आनेपर खडे होना, वह "गुरु अब्भुट्ठाणेण " आगार, विधिपूर्वक ग्रहण करने पर शेष परठवने योग्य आहार को (गुरु आज्ञासे) लेना ( वापरना) वह " पारिट्ठा वणियागारेण" आगार यति को ही होता है । तथा वस्त्र के प्रत्याख्यान में "चालपट्ठागारेण" आगार भी यति को ही होता है | ॥२६॥
खरडिय लूहिअ डोवाई लेव संसट्ठ डुच्च मंडाई; उक्खित्त पिंड विगईण, मक्खियं अंगुलिही मणा ॥ २७ ॥
श्री पच्चक्खाण भाष्य
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