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(भत्तोस = भक्तोष याने) सेके हुए धान्य तथा फलादि वस्तुएं खादिम में आती है । सूंठ, जीरा, अजवायन विगेरे तथा शहद, गुड, तंबोल विगेरे भी स्वादिम में आते है। और मूत्र (गोमूत्र) तथा निम विगेरे अनाहार में आते है । ॥१५॥ दो नवकारि छ पोरिसि, सग पुरिमड्ढे ईगासणे अट्ठ; । सत्तेगठाणि अंबिलि, अट्ठ पण चउत्थि छ पाणे ॥१६॥ ___ नवकारसी में २ आगार, पोरिसी में ६ आगार पुरिमड्ड में ७ आगार, एकाशन में (तथा बिआसने में) ८ आगार, एकलठाणे में ७ आगार, आयंबिल में ८ आगार, चतुर्थभक्त में (उपवास में) ५ आगार और पाणस्स के प्रत्याख्याने में ६ आगार होते हैं । ॥१६॥ चउ चरिमे चउ-भिग्गहि, पण पावरणे नवट्ठ निव्वीए; आगारुक्खित्त विवेग मुत्तुं दव विगई नियमि-ट्ठ॥ १७ ॥ ___ चरिम प्रत्याख्यानों में (दिवस चरिम और भव चरिम में) ४ आगार, अभिग्रह में ४ आगार, प्रावरण (वस्त्र के) प्रत्याख्यान में ५ आगार. और नीवि में ९ आगार, अथवा ८ आगार । यदि नीवि के विषय में पिंडविगइ और द्रव विगइ इन दोनों का प्रत्याख्यान हो तो (९ आगार) मात्र द्रव विगइ के नियम में उक्खित्त विवेगेणं इस आगार को छोडकर शेष ८ आगार होते हैं । ॥१७॥
श्री पच्चक्खाण भाष्य
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