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श्री पच्चक्खाण भाष्य दस पच्चक्खाण चउविहि, आहार दुवीसगार अदुरुत्ता; दस विगई तीस विगई-गय दुहभंगा छ सुद्धि फलं ॥१॥
१० प्रकार का पच्चक्खाण, ४ प्रकार का (उच्चार) विधि, ४ प्रकार का आहार, दूसरी बार बोले नहीं जानेवाले (नही गिने गये) ऐसे २२ आगार, १० विगई, ३० नीवियाते, २ प्रकार के भेद, ६ प्रकार की शुद्धि, और (२ प्रकार का) फल, (इस प्रकार ९ मूलद्वार के ९० उत्तर भेद होते हैं) ॥१॥ अणागय-मईक्कं तं, कोडीसहियं नियंटि अणगारं; सागार निरवसेसं, परिमाणकडं सके अद्धा ॥ २ ॥
अनागत पच्चक्खाण, अतिक्रान्त पच्चक्खाण, कोटिसहित पच्चक्खाण, नियन्त्रित पच्चक्खाण, अनागार पच्चक्खाण, सागर पच्चक्खाण, निरवशेष पच्चक्खाण, परिमाणकृत पच्चक्खाण, संकेत पच्चक्खाण, और अद्धापच्चक्खाण, (इस प्रकार १० प्रकार के पच्चक्खाण हैं) ॥२॥ नवकारसहिअ पोरिसि, पुरिमड्डे-गासणे-गठाणे अ; आयंबिल अब्भतढे, चरिमे अ अभिग्गहे विगई ॥ ३ ॥
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भाष्यत्रयम्