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इरियावहियं - नमस्कार - नमुत्थुणं - अरिहंत चे० स्तुति - लोगस्स सव्वलोए - स्तुति – पुक्खरवरदी - स्तुति सिद्धाणं – वेयावच्चगराणं - स्तुति – नमुत्थुणं - जावंति
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चेइ० दो, स्तवन और जयवीयराय ॥६२॥
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सव्वोवाहि विसुद्धं, एवं जो वंदए सया देवे; देविंदविंद महिअं, परमपयं पावइ लहुं सो ॥ ६३ ॥
इस तरह जो मानव देवको प्रतिदिन वंदना करता है, वह मानव देवेन्द्रो के समूह द्वारा पूजित सर्व उपाधियों से शुद्ध बना हुआ शीघ्र मोक्षपद प्राप्त करे ||६३ ||
॥ इति प्रथम भाष्य ॥
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भाष्यत्रयम्