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प्रकृतियों को मिलाने पर मिश्र गुणस्थानक सम्यक्त्व गुणस्थानक में 70 प्रकृतियों का बंध होता है। अणचउवीस विरहिआ, सनरदुगुच्चा य सयरि मीसदुगे । सतरसओ ओहि मिच्छे, पज्जतिरिया विणु जिणाहारं ॥८॥
। भावार्थ : तिर्यंच गति में पर्याप्त तिर्यंच मिथ्यात्व गुणस्थानक में तीर्थंकरनामकर्म एवं आहारक द्विक को छोड़कर सामान्य से 117 प्रकृतियों का बंध करते हैं ॥८॥ विणु निरयसोल सासणि, सुराउ अणएगतीस विणु मीसे। ससुराउ सयरि सम्मे, बीअकसाए विणा देसे ॥ ९ ॥
भावार्थ : सास्वादन गुणस्थान में नरक, त्रिक आदि सोलह प्रकृतियों को छोड़कर मिश्र गुणस्थानक में देवायु
और अनंतानुबंधी चतुष्क आदि 31 को छोड़कर सम्यक्त्व गुणस्थानक में देवआयुष्य सहित सत्तर तथा देशविरति गुणस्थानक में दूसरे कषाय के बिना 66 प्रकृतियों का बंध करते हैं ॥९॥ इय चउगुणेसु वि नरा, परमजया सजिणओहु देसाई । जिणइक्कारसहीणं नवसय-अपजत्त-तिरिअनरा ॥१०॥
भावार्थ : पर्याप्त मनुष्य पहले से चौथे गुणस्थानक में तिर्यंच की तरह ही कर्मप्रकृतियों का बंध करते हैं । मात्र
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कर्मग्रंथ