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7. लेश्या, 8. इन्द्रिय, 9. समुद्घात, 10. दृष्टि, 11. दर्शन, 12. ज्ञान, 13. अज्ञान, 14. योग, 15. उपयोग, 16. उपपात, 17. च्यवन, 18. स्थिति, 19. पर्याप्ति, 20. किमाहार, 21. संज्ञी, 22. गति, 23. आगति और 24. वेद ॥३-४॥ चउ गब्भ-तिरिय वाउसु, मणुआणं पंच सेस तिसरीरा; । थावरचउगे दुहओ, अंगुलअसंखभागतणू ॥ ५ ॥
गाथार्थ : गर्भज तिर्यंच और वायुकाय के जीवों के चार शरीर, मनुष्य के पाँच शरीर और शेष (21 दंडकों में) तीन शरीर होते हैं। ___ चारों स्थावरों में जधन्य व उत्कृष्ट से अंगुल का असंख्यतवा भाग प्रमाण शरीर होता है ॥५॥ सव्वेसि पि जहन्ना, साहाविय अंगुलस्स असंखंसा; । उक्कोस पणसयधणू, नेरइया सत्त हत्थ सुरा ॥ ६ ॥ ___ गाथार्थ : सभी दंडकों में स्वाभाविक शरीर की जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग जितनी है, नारकों की उत्कृष्ट अवगाहना 500 धनुष्य और देवताओं की 7 हाथ है ॥६॥ गब्भतिरि सहस जोयण, वणस्सई अहिय जोयणसहस्स; । नर तेइंदि तिगाऊ, बेइंदिय जोयणे बार ॥ ७ ॥
गाथार्थ : पंचेन्द्रिय गर्भज तिर्यंच की उत्कृष्ट अवगाहना एक हजार योजन है वनस्पति की एक हजार
दंडक-लघुसंग्रहणी