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गाथार्थ : जंबूद्वीप में चक्रवर्त्तियों के जीतने योग्य विजय चौंतीस (३४) हैं । पद्म आदि छह महाद्रह और देवकुरु क्षेत्र में दस लघुद्रह हैं ये दोनों मिलकर सोलह द्रह होते हैं ।
गंगा सिंधू रत्ता, रत्तवड़ चनइओ पत्तेयं । चउदसहिं सहस्सेहिं, समगं वच्चंति जलहिम्मि ॥ २१ ॥
गाथार्थ : गंगा, सिन्धु, रक्ता, रक्तवती ये चार नदियाँ एक - एक चौदह चौदह हजार नदियों के परिवारवाली हैं, ये अपने परिवार सहित लवण समुद्र में जाकर मिलती हैं । एवं अब्भितरिया, चउरो पुण अट्ठवीस सहस्सेहिं । पुणरवि छप्पन्नेहिं, सहस्सेहिं जंति चउसलिला ॥२२॥
गाथार्थ : इसी तरह आभ्यन्तरचारी चार नदियाँ अट्ठाइस - अट्ठाइस हजार तथा फिर भी चार आभ्यन्तरचारी नदी छप्पन छप्पन हजार नदियों के परिवार से लवणोदधि में जाकर मिलती हैं ।
कुरुमज्झे चउरासी, सहस्साइं तहय विजयसोलससु । बत्तीसाण नईणं, चउदस सहस्साइं पत्तेयं ॥२३॥
गाथार्थ : देवकुरु तथा उत्तरकुरु की सीतोदा और सीता इन दो नदियों में चौरासी चौरासी हजार नदियों के परिवार से छ: छ: अन्तरनदियाँ मिलती हैं, उसी तरह सोलह विजयों में प्रत्येक विजय की दो-दो नदियाँ गिनने से बत्तीस दंडक - लघुसंग्रहणी
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