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पृथ्वीकाय आदि दस पदों से निकला हुआ जीव अग्निकाय और वायुकाय में पैदा होता है ||३७|| तेऊवाऊ-गमणं, पुढवी - पमुहंम होई पयनवगे; 1 पुढवाईठाणदसगा, विगलाइतियं तहिं जंति ॥ ३८ ॥
गाथार्थ : अग्निकाय और वायुकाय के जीव मरकर पृथ्वीकाय आदि नौ पदो में जाते हैं । पृथ्वीकाय आदि दस पद विकलेन्द्रिय में जाते हैं और तीनों विकलेन्द्रिय मरकर दस पदों में पैदा होते हैं ||३८||
गमणागमणं गब्भय, तिरियाणं सयलजीवठाणेसुः । सव्वत्थ जंति मणुआ, तेऊवाऊहिं नो जंति ॥ ३९ ॥
गाथार्थ : गर्भज तिर्यंचों का गमनागमन सभी जीवस्थानों में होता है । मनुष्य भी मरकर सभी दंडकों में पैदा होता है । सिर्फ अग्निकाय और वायुकाय मरकर, मनुष्य नहीं बनते हैं ||३९||
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वेयतिय तिरि-नरेसु, इत्थी पुरिसो य चउविह- सुरेसुः । थिरविगलनारएसु, नपुंसवेओ हवइ एगो ॥ ४० ॥
गाथार्थ : तिर्यंच और मनुष्यों में तीनों वेद होते हैं । चारों प्रकार के देवताओं में स्त्री और पुरुष वेद होता है । स्थावर, विकलेन्द्रिय और नारकों में सिर्फ नपुंसक वेद होता
है ||४०||
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दंडक - लघुसंग्रहणी