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तथा उन चारित्रों के बाद यथाख्यात अर्थात् सर्व जीवलोक में प्रसिद्ध चारित्र है। इस यथाख्यात चारित्र का पालन करके सुविहित जीव मोक्ष प्राप्त करते हैं ॥ ३३ ॥ अणसण-मूणोअरिया, वित्तीसंखेवणं रसच्चाओ,। कायकिलेसो संलीणया य, बज्झो तवो होइ ॥ ३४ ॥
अनशन ऊनोदरिका, वृत्तिसंक्षेप, रसत्याग, कायक्लेश और संलीनता ये बाह्य तप हैं ॥ ३४ ॥ पायच्छित्तं विणओ, वेयावच्चं तहेव सज्झाओ, । झाणं उस्सग्गो वि अ, अब्भिंतरओ तवो होइ ॥ ३५ ॥ ___प्रायश्चित, विनय, वैयावृत्य और स्वाध्याय, ध्यान, उसी तरह कायोत्सर्ग भी आभ्यन्तर तप हैं ॥ ३५ ॥ बारस विहं तवो निज्जरा य बंधो चउ-विगप्पो अ, । पयई-द्विइ-अणुभाग-प्पएस-भेएहिं नायव्वो ॥ ३६ ॥ ___बारह प्रकार के तप (संवर और) निर्जरा हैं तथा प्रकृतिबंध, स्थितिबंध, अनुभाग (रस) बंध और प्रदेश बंध के भेदों से बंध चार प्रकार के जानें ॥ ३६ ॥ पयइ सहावो वुत्तो, ठिइ कालावहारणं,। अणुभागो रसो णेओ, पएसो दलसंचओ ॥ ३७ ॥
प्रकृति-स्वभाव कहा है, काल का निश्चय स्थिति है, अनुभाग रस जानना और दलिकों का संग्रह अथवा समुदाय प्रदेशबन्ध है ॥ ३७ ॥ २६
जीवविचार-नवतत्त्व