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धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय, आकाशास्तिकाय और काल, ये पाँच अजीव हैं । चलने में (गति करने में) सहाय करने के स्वभाव वाला धर्मास्तिकाय है। स्थिर रहने में सहाय करने के स्वभाव वाला अधर्मास्तिकाय है। पुदगलों और जीवों को अवकाश (स्थान) देने के स्वभाव वाला, आकाशास्तिकाय है। स्कन्ध, देश, प्रदेश और परमाणु इन चार प्रकारों से ही पुद्गल को जानना चाहिये ॥९-१०॥ सबंधयार उज्जोअ, पभा छायातवेहि अ,। वण्ण गंध रसा फासा, पुग्गलाणं तु लक्खणं ॥ ११ ॥
शब्द, अन्धकार, उद्योत, प्रभा, छाया और आतप सहित वर्ण, गंध, रस और स्पर्श, ये पुद्गलों के ही लक्षण हैं ॥ ११ ॥ एगाकोडि सत्तसही, लक्खा सतहत्तरी सहस्सा य, । दो य सया सोलहिआ, आवलिआ इग मुहुत्तम्मि ॥ १२ ॥ ____एक मुहूर्त में एक करोड, सडसठ लाख, सत्तहत्तर हजार, दो सौ सोलह से (कुछ) अधिक (१, ६७, ७७, २१६ से कुछ अंश अधिक) आवलिकाएँ होती है ॥ १२ ॥ समयावली मुहुत्ता, दीहा पक्खा य मास वरिसा य,। भणिओ पलिआ सागर, उस्सप्पिणी-सप्पिणी कालो ॥१३॥
समय, आवली, मुहूर्त, दिवस (दिन), पक्ष (पखवाडा), मास (महीना) वर्ष (साल), पल्योपम, सागरोपम, उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी काल कहा है ॥ १३ ॥
जीवविचार-नवतत्त्व